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________________ कचलोरा १६०७ ये चार से बनता है । यह पानी में जल्दी नहीं घुलता और पाचक होता है। कचियानोन। काँच लवण | नमक शीशा (फ्रा० ) । गुण - यह प्रकृति में उष्ण है और सुधाजनक, रविकारवर्द्धक एवं पित्तप्रकोपक है । ता० श० । 'कचलोरा-संज्ञा पुं० [देश॰] एक शिबीवर्गीय पौधा जो गंगा नदी से पूरब की ओर हिमालय से बाहर और दक्षिण भारत के जंगलों में होता है। (Pithecolobium Bigaminum, Benth.) दर्नापन्थी - ( बर० ) । उपयोग—इसके पत्तों का काढ़ा कुष्ठ रोग की दवा है औौर उत्तेजक रूप से बाल बढ़ाने के लिये इसका उपयोग करते हैं । ऐटकिन्सन । इं० मे प्रा० । बरमा में इसके बीज मधुमेह रोग को मिटाने के लिए काम में श्राते हैं । कचलोहा - संज्ञा पु ं० [हिं० कच्चा + लोहा ] कच्चा लोहा । कचलोही संज्ञा स्त्री. दे० " कचलोहा " । कचलोहू-संज्ञा पु ं० [हिं० कच्चा + लोहू ] वह पनछा वा पानी जो खुले घाव से थोड़ा-थोड़ा बहता है । रक्त रस । कवस्सल - संज्ञा पु ं० [ पं० ] वन पलाशडु । जंगली प्याज | काँदा । कचहस्त - संज्ञा पु [सं० पु० ] केश समूह । अम० | बालों की लट । कचा- संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] ( 1 ) हथिनी । हस्तिनी | मे० चह्नि । ( २ ) संधिच्युति | जोड़ का छूटना। ( ३ ) एक प्रकार की घास । ( ४ ) । कचीली कचामोद - संज्ञा पुं० [सं०ली० ] (१) वाला | सुगंधवाला | नेवाला । ह्रीवेर । रा०नि०व०१० । (२) बालों में लगाने की एक सुगंधित चीज़ । कचायँव-संज्ञा स्त्री० [हिं० कच्चा + गंध ] कच्चेपन की महक | कचाई की गंध । कचाकु संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] ( १ ) विलेराय । (२) सर्प | मे० कत्रिक वि० [सं० त्रि० ] कुटिल । कचाटुर-संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] ( १ ) एक पक्षी । संस्कृत पर्याय — शितिकण्ठः, दात्यूहः, , कोकमद्र । दात्यूह | हुक पक्षी | चातक । त्रिका० । ( २ ) बनमुरगी जो पानी बा दलदल के किनारे की घासों में घूमा करती है। कचालू-संज्ञा पुं० [हिं० कच्चा+श्रालू ] ( १ ) एक प्रकार की हई | बंढा | घुइयाँ । (२) एक प्रकार की चाट | कचावट-संज्ञा पु ं० [हिं० कच्चा + श्रावट ( प्रत्य० ) ] एक प्रकार की खटाई जिसे कच्चे आम के पते को श्रमावट की तरह जमाकर बनाते । कंचिका - [ ते० ] केमुक ( बम्ब० ) । कुष्ठ (बं० ) । कचिटामर्थ काई -[ ता० ] वेलाम्बू ( ते० ) । त्रिलिंबी । चिपडे - [D] कोथ गंवल । रंगन ( बं० ) । Ixora parvi flora, Vahl.) Tor ch tree. कचिया नमक - संज्ञा पुं० [हिं० काँच+नमक ] कचलोन । काँच लवण | 1 कविया नान - संज्ञा पुं० दे० " कश्चिया नमक" । कचिया मछली -संज्ञा स्त्री० [ कचिया + मछली ] मारमाही । बाम मछली । दे० "बाम" । कचिरी - संज्ञा स्त्री० [देश० कचुजातीय एक चुप जो बङ्गदेश श्रौर चट्टग्राम में उत्पन्न होता है और प्रायः पुष्करिणी के किनारे दिखाई पड़ता है। पत्र प्रकाशित रहता है। पत्र तलदेश के प्रायः मध्यभाग में वृन्त से मिल जाते हैं। पत्रांश चारों कोशिष्ट होता है। कचुके फूल की तरह यह भी विजातीय है। फूल का डंठल ऊपरी भाग पर क्रमशः मोटा पड़ता जाता है। फूल का बहिराचरण डंठल की तरह समान रहता है। इसमें दो-तीन बीज उत्पन्न होते हैं। ६ि० वि० को० । कची - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] एक बीज । कुचापिबीज । रस० र बाल-चि० । [ तु० ] बकरी । कचीमूला -संज्ञा स्त्री० [हिं० कच्चा + सं० मूलक ] मूली । कोमल मूली । बालमूलक । कचीर - संज्ञा पुं० [?] कचूर | कचीली - [ क० ] जंभीरी नीबू ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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