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________________ ककोड़ा १८८४ ककोड़ा यह खाँसी, फेफड़े एवं शरीर के दर्द और | जीर्णज्वरों को लाभकारी है। इसकी जड़ का लेप बालों की जड़ों को दृढ़ करता है और बाल झड़ने को रोकता है। यह केशपात वा बालखोरा (दाउस्सालब) को भी लाभकारी है। बंगाल निवासी इसको कतरकर मांस में पकाकर खाते हैं । (बु० मु०) ___ ककोड़ा खाँसी को दूर करता है। यह फेफड़े के दर्द और जीर्णज्वर को लाभकारी है । यह अर्श में लाभ करता और वृक्कशूल एवं पार्श्वशूल को दूर करता है। इन रोगों में इसकी जड़ भी गुणकारी है । यदि इसे गोघृत में तलकर उक्त घृत को नाक में टपकाएँ, तो अविभेदक तुरत नष्ट हो जाता है । इसके रससे नासिकागत समस्त कृमि नष्ट होजाते हैं । यह कर्णशूल में भी गुणकारी है। एक तोला इसकी जड़ महीन पीसकर पीने से वृक्काश्मरी नाश होतो है और यह अश्मरी का | निर्माण नहीं होने देती है। इसकी जड़ के लेप से केशमूल दृढ़ होते और केश बढ़ते हैं। ककोड़ा विषों का अगद है। इसका रस कान में टपकाने से कर्णशूल मिटता है। इसकी जड़ के लेप से बालखोरा दूर होता है । (ख. अ.) छिलका उतारे हुये बीज अकेले वा अन्य भोज्य पदार्थ के साथ खाये जाते हैं। (मज़न) नव्यमत डिमक—यह उरो शूल और कास में उपकारी स्वीकार किया जाता है । इसका चूर्ण बंगदेशीय झाल नामक द्रव्य का एक उपादान है, जो द्रवीभूत नवनीत के साथ प्रसूता नारियों को, प्रसवोत्तर तुरत और इसके उपरान्त कुछ दिन तक श्रासिक दी जाती है। बॉझककोड़ा (बन्ध्या कर्कोटकी) पया-वन्ध्यककोटको, देवी, मनोज्ञा, कुमारिका, नागारिः, सर्पदमनी, विषकण्टकिनी, नागद- | मनी, सर्वभूतप्रमर्दिनी, व्याघ्रपाद (वन्ध्यापुत्रदा), प्रजा, योगीश्वरी, (ध० नि०), वन्ध्या, देवी, वन्ध्यककोटको, नागारातिः, नागहन्त्री, मनोज्ञा, पथ्या, दिव्या, पुत्रदात्रो, सुकन्दा, श्रीकन्दा, कंद. वल्ली, ईश्वरी, सुगन्धा, सर्पदमनी, विषकरटकिनी, वरा, कुमारी, विषहन्त्री (रा० नि०) विषमाश- मनी, निष्फला, नागघातिनी, मज्जादमनी, (के. दे.), वन्ध्याककर्कोटकी, देवी, कान्ता, योगेश्वरी, नागारिः, भक्कदमनी, विषकण्टकिनी, नागारातिः, वन्ध्या, नागहन्त्री, मनोज्ञा, पथ्या, दिवा, पुत्रदा, सकंदा, कंदवल्ली, ईश्वरी, श्रीकंदा, सुगंधा, सर्पदमनी, विषकन्दकिनी, वरा, नक्रदमनी, कंदशा. लिनी, भूतापहा, सर्वोषधी, विषमोह प्रशमनी, महायोगेश्वरी-सं० । बाँझ खखसा, बाँझ खेकसा, वाँझ खखसा, वाँझ ककोड़ा (ड), बनककोड़ा, वाँझ ककोली, बन परवल, कडू काकड़ा-हिं० । तिकांकरोल, तित्काँकड़ी, गोल ककड़ा. वाँझ क.करोहल-बं०। वाझ कटोली, वांझ कंटोली,वंझा कंटोली-मरा० । वाँझ कंटोलो, फलवगरना, कंटोला-गु० । बंजेमडु वागलु-कना। मोमोर्डिका डायोइकामल Mo mordica Dioica mal, ले। बाँझ खाखा -पं०। पुलप, घेलुकुलंग -ता । वंजेमड़वागलु -का। वंझा कंटोलो -बर० । गुणधर्म तथा प्रयोग आयुर्वेदीय मतानुसारनागारिलू ता विजिद्धन्ति श्लेष्मविषद्वयम् । (ध०नि०) वांझ ककोड़ा (नागारि)लूता (मकड़ी) के विष को दूर करनेवाला, श्लेष्मानाशक और स्थावर-जंगम दोनों प्रकार के विषों को हरण करनेवाला है। वन्ध्यकर्कोटकी तिक्ता कटूष्णा च कफापहा । स्थावरादि विषघ्नी च शस्यते सा रसायने ॥ (रा०नि०३ व०) बाँझ ककोड़ा-कड़वा, चरपरा, गरम, कफनाशक, स्थावरादि विषनाशक और पारेको बाँधने. वाला है। वन्ध्याकर्कोटकी लध्वो कफनुद् व्रणशोधिनी । सर्पदर्प हरी तीक्ष्णा विसर्प विषहारिणी॥ (भा०) वाँझ खेखसा-हलकी, कफनाशक, व्रणशोधक और तीक्ष्ण है तथा साँप के दर्द को दूर करता एवं विसर्प और विष का नाश करता है।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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