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________________ कउ कउ - [?] खवन । शबन ( ट्रां० इं० ) । जैतून (अ) । उनी - [ उ०प०प्र० ] ककुनी । कंगु । कउर- [ पं० ] कंडेर । क - [ बर० ] गंधक | क़सा - [ ० ] खर्ब । कक - [ फ़ा० । सं० काक का संक्षिप्त ] कौश्रा । काक | क़क़अ - [ श्र० ] चूहा । मूसा । ककई - संज्ञा स्त्री० ( १ ) दे० "कंधो" । ( २ ) छोटीपुरानी ईंट | क़क़ख - [ सिरि० ] काकनज । ककज - [ फ्रा० ] ( १ ) राई । ( २ ) जर्जीर । ककजः-[ फ्रा० ] बिनौला । कपास का बीया । ककड़ा संज्ञा पु ं० [ पं० ] भवन बकरा । पापड़ा । पापड़ी | १८७० ककड़ासींगी - संज्ञा स्त्री० दे० "काकड़ासींगी" । ककड़ासिंगी - [ ० ] काकड़ासींगी । कर्कटशृंगी । ककड़ी - संज्ञा स्त्री० [सं० कर्कटी, पा० कक्कटी ] (१) जमीन पर फैलनेवाली खीरे की जाति की एक बेल जिसमें लम्बे-लम्बे फल लगते हैं। यह फागुन चैत में बोई जाती है और बैसाख जेठ फलती है । इसीसे इसे 'जेठुई ककड़ी' भी कहते हैं । इसकी बेल भी खीरे की सी होती है; परन्तु इसके पत्ते खीरे के पत्तों से छोटे और चिकने होते हैं । इसका फूल पीला होता है । इसके फल गोल एक हाथ या उससे अधिक लम्बे कुछ मुड़े हुये, पतले और रेखाबंधुर होते हैं अर्थात् उस पर लंबाई के रुख उभरी हुई रेखाएँ होती हैं। ककड़ी जब छोटी होती है, तब बहुत नरम और रोऍदार होती है। जब पूरी बढ जाती है, तब अढ़ाई बित्ता लम्बी हो जाती है। रंग में यह हरी वा कुछ-कुछ पीलापन लिये सफेद होती है और जब पक जाती है, तब ऊपर से चमकदार पांडु पीत नागरंग वर्ण की हो जाती है । यह तासीर में ठंडी होती है इसीसे इसको तर ककड़ी भी कहते हैं। किसीकिसी ग्रंथ में लिखा है कि तर ककड़ी इसकी एक ख़ास क़िस्म है। इसका फल कच्चा तो बहुत खाया जाता है, पर तरकारी के काम में भी श्राता है । लखनऊ की ककड़ियाँ बहुत नरम, पतली और 1 1 ककड़ी मीठी होती है । संयुक्त प्रदेश, सीमा प्रांत - उत्तरी पश्चिमी सूबा, पंजाब और बंग प्रदेश में इसकी खेती होती है । पर्याय : – कर्कटी, कटुदल, छर्दासनीका, (छर्चायनी), पीतसा, मूत्रफला, त्रपुसो, हस्तिपर्णी ( हस्तिपर्णिका ), लोमशकण्टा, मूत्रला, नागमिता वा बहुकण्टा ) ( रा० नि० ० ७ ), कर्कटः ( शब्दर०), कर्कटाक्षः शान्तनु (२०), चिर्भटी, वालुकी, एवरुः, पुषी ( हे० ), कर्कटाख्या, कर्कटाङ्गा ( र मा. रा०नि० सि यो०, वै० निघ० ), एर्वारुः, ऊर्वारुः, दीपनी, स्फोटिनी, नल विवर्द्धनी, शकटी, गजकर्णिका, कर्कटाख्यः, कर्कटिः, कर्कटिका-सं० ।ककड़ा,जि (जे) दुई ककड़ी, तरककड़ी, काकड़ी-हिं० । कँकड़ी, काकड़ी - ३० । काँकड़ी, काँकुड़ - ० | क़िस्स । खियार्जः खियार दराज़, ख़ियार तवील - फ्रा० । क्युक्युमिस युटिलिस्सिमस Cucumis Utilissimus, Roxb., - ले०|ककुबर Cucumber, Most useful श्रं० । कक्करिक्काय, मुलवेल्लिरिक्कायता० । मुल्लु - दोसकाय, नक्कदोस - ते० । कक्करिकमल० । मुल्लु सवते, क्येयसौत, कोयसौतकना०, का० । तरब्वा-बर० । ख्याट् जाव् - का० । ककरी, कुकड़ी - ( काँगड़ा) । काँकड़ी - मरा०, गु० । तार- ककड़ी - पूना | काकड़ी -बम्ब० । काकड़ी६० | नोट - ठंडाई में और यूनानी चिकित्सा में इसी के बीज काम में आते हैं I (२) ज्वार वा मक्का के खेत में फैलनेवाली एक बेल जिसमें लम्बे और बड़े फल लगते हैं । इसकी बेल भी प्राय: उपर्युक्त ककड़ी के बेल के समान ही होती है। फल भादों में पककर श्राप से श्राप फूट जाते हैं, इसी से 'फूट' कहलाते हैं । ये ख़रबूजे ही की तरह होते हैं, पर स्वाद में फीके होते हैं । इसके ख़रबूजे के सदृश होने के कारण ही कदाचित् श्रर्वाचीन पाश्चात्य वनस्पतिशास्त्रविदों ने इसे (Cucumis melo) अर्थात् खरबूजा और किसी-किसी यूनानी चिकित्सक ने खुरपूजा का श्रन्यतम भेद स्वीकार किया है । मीठा मिलाने से इनका स्वाद बन जाता है। यह फूट
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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