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________________ औंधा १८६८ कत्रक . औंधा-वि० [सं० अधः वा अवधा] [स्त्री० औंधी] | सूचक हैं । फूल अर्कवत् होने के कारण इसे अर्क उलटा । पट । जिसका मुंह नीचे की ओर हो। पुष्पी, श्रौंधा होने के कारण अधःपुष्पी, अधो संज्ञा पुं० एक प्रकार का पकवान, जो बेसन | पुष्पी, चोरहुली, चोरपुष्पी आदि नामों से अभिऔर पीठी का नमकीन और आटे का मीठा बनता हित करते हैं। देश में यह अंधाहुली और ओंधाहै, जिसे देश में उलटा, चिल्ला और चिलड़ा भी हुली नाम से प्रसिद्ध है। ऊँधाहुली गुण-यह कफ को निकालती है। सूखी औंधाहुली-संज्ञा स्त्री॰ [ देश०, हिं० धा+हुली ] खांसी में इसे १ तोला लेकर क्वाथ करके मिश्री एक क्षुद्र क्षुप जो प्रायः बलुई ज़मीन में पैदा मिलाकर पीने से विशेष लाभ होता है। होता है। Trichodesma Indicum. इसकी हरी पत्ती जल में पीसकर १ तोला इसका पौधा अधिक से अधिक १॥ बालिश्त प्रातः और १ तोला सायंकाल पीने से वीर्य की तक ऊँचा होता है । इसकी जड़ सीधी पृथ्वी में तरलता, जिसके कारण शीघ्रपतन हुआ करता है, घुसी होती है। इसको टहनियाँ लोमश लाल दूर होती है और वीर्य गाढ़ा होजाता है। रंग की होती हैं। पत्तियाँ लोमश करीब ३-४ इसकी हरी पत्तियों की टिकिया बनाकर अर्श के अंगुल लम्बी देखने में भालाकार श्वेताभ होती हैं. मस्सों पर बाँधने से उसका प्रदाह कम होता है। फूल प्रायः सब महीनों में लगते हैं। फूल श्वेत- यूनानी "गावज़वां" की यह उत्तम प्रतिकिंचित् बैंगनी रंग के होते हैं, जो खिलने पर पृथ्वी की ओर झुक जाते हैं। फूल का बाहरी औंरा-संज्ञा पु० [ देश० ] [स्त्री० अल्पा० औंरी ] कोष जिसमें उसकी पंखड़ियाँ लगी हुई होती हैं, दे० "आँवला" । श्वेत लोमश होता है । इसके फूल पृथ्वी की ओर औंरी-संज्ञा स्त्री॰ [ौरा का अल्पार्थक वा स्त्री.] श्रोधा स्थित होने के कारण इसे उक्त संज्ञा दी छोटा आँवला । जंगली आँवला । अँवरी । . गई है। इसके संस्कृत पर्याय भी उन अर्थ के | औंस-संज्ञा पु० दे० "अाउंस"। वर्ण है। (क) क-हिंदी वा संस्कृत वर्णमाला का पहला व्यंजन | अर्थ-केक (Cake ) बिसकुर ( Biscuit) शीरमाल। संज्ञा पुं॰ [सं० की ] (१) जल । रा० निः कअ क, खुब्ज़ और बिकसुमातव० १४ । (२) सुख । मे०। (३) केश | धर० ।। किसी किसी ने कअक् को केक (अं०) का संज्ञा पु० [सं० पु.] (१) अग्नि । (२) भी मुअर्रिब लिखा है; पर इसका प्रयोग प्रायः वायु । (३) यम । (४) सूर्य । (१) प्रात्मा । रूखी रोटी के लिये होता है । खुब् सामान्य रोटी (६) मयूर । मे० । (७) मन । (८) शरीर । को कहते हैं, चाहे वह ताज़ी हो वा बासी और () काल । (१०) धन। (११) शब्द। बिक्सुमात रूखी रोटी का प्रसिद्ध नाम है। अने० को० । (१२) ग्रंथि । गाँठ । (१३) काम नोट-किसी किसी ग्रन्थ में रोग़नी या मीठी देव । (१४) ब्रह्मा । (१५) विष्णु। रोटी के लिये कअक् शब्द का प्रयोग हुआ है। कअ कु-संज्ञा स्त्री॰ [ का. काक से मु०] (१) गुण धर्म तथा उपयोग-यह उष्ण एवं रूक्ष मैदे की रूखी छोटी रोटी | पतलो सूखी रोटी। है; दस्त रोकती है, द्रवों का शोषण करती हैं और खुश्क नान (फा०)। (२) तनूर में गरम कुलंज-रोग-पीड़ितों को हानिकर है। किसी किसीपत्थर पर पकाई हुई मोटो रोटी । (३:)अर्वाचीन | कुर्स (टिकिया ) में पड़ती है।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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