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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व०१५ अश्वाहादिखुरा, री UFE. মৰ वैः निघ० वा० व्या० शतावरी तैल, नारायण : गुण-कटु, मधुर, कसे ला, ईषत् दीपन, भारी, तैल । मूर्छानाशक और बात को कम करनेवाला है। प्रश्वाहादि बुरा-रो ashvah vadi-khura,~| रा०नि०१० १५ । ri-सं० स्त्री० श्वेत अपराजिता, विष्णुकान्ता । श्रश्वोदधि ashvi.dadhi-सं० क्ली० घोड़ी के (Clitorea ternatea.) वे निघः । के दुग्ध से उत्पन्न हुआ दधि, घोड़ो का दही । च०३। घोड़ोर दई-चं० । घोदि चे दहि-मह। कृदिरेय अश्वाक्षः ashvakshah-सं० ए० (१) देव सोसरु-कं० । सर्षप वृक्ष । (See-Deva-sarshapu.) ! गुण-मधुर, कपे ज़ा, रूक्ष, कफ रोग तथा श्रम । (२) वृक्ष भेद। (A 80rt of l मूर्छानाशक और ईपद्वातल (थोड़ा वातकारक ), . tree.)रा०नि०। दीपन तथा नेत्रदापनाशक है। रा०नि०१० अश्विजो ashvijou-सं० प. अश्विनीकुमार, : स्वर्ग के वैद्य, देव वैद्य । ( See - Ashvini- | अश्वान नीतम् ashvi-havinitam-सं० k mára.) क्ला घोटकी दुग्ध जात नवनीत. घोड़ी के अश्विनी ashvini-सं० स्त्री०(१) जटामांसी। दुग्ध से निःमरित नवनीत. घोड़ी का मक्खन ( Valerianth jatamansi. ) व० (नैन । । घोडार दुधेर ननी-बं०। निघः । (२) धोड़ी। गुण-कपेला, वातनाशक, नेत्रको हितकारक, अश्विनीकुमार ashvini-kumāra-हिं० संज्ञा । कटु, उष्ण और ईषद् वातकारक, है । रा०नि० पु. देव वैद्य, स्वर्ग के वैद्य । पर्या-स्ववैद्य ।। दस । नासत्य । आश्विनेय । नासिक्य । गदागद । अश्वीयम् ashviyan-सं० क्ली०(१) अश्व पुष्करस्रज । समूह, सम्पूर्ण अश्वजाति, अश्वमाय ।-त्रि० (१) अश्विनीकुमारो रस: ashvini-kumaro- | अश्वहेतु, अश्व के लिए। मे० यत्रिक। (२) rasah-सं. पत्रिकुटा, त्रिफला, अफ़ीम, ! अश्व सम्बंधी । घोड़े का । - मी तेलिया, पीपलामून लवंग, जमालगोटा, । अश्वीक्षीरम् ashvi-kshiram-सं० क्ली० हरताल, सुहागा, पारा, गंधक प्रत्येक ... ! घोटकी दुग्ध, घोड़ी का दूध । कर्ष लेकर यथा क्रम प्राधा प्राधा प्रस्थ गाय के गुण-उष्ण, रूक्ष, बलकारक, वात कफ. दूध, गोमूत्र और भाँगरे के रस में धोटकर नाशक है। एक शफ(खुर)शीर मात्र लवणाम्ल गोलियाँ बनाएँ। ( नमकीन तथा खट्टा ), लघु और स्वादिष्ट मात्रा-मुद्न प्रमाण । इसे उचित अनुपान के होते हैं। मद. ३०८। साथ सेवन करने से अनेक रोग दूर होते हैं। अश्वेता ashveta-सं० स्त्रो० (१) कृष्ण अन० त.। अपराजिता । Clitorea ternatea('The अश्विनो ashvinou-सं) पु. दोनों अश्विनी- black VELL. of-)। (२) कृष्ण प्रतिविपा, __ कुमार । रत्ना०। frat vata Aconitum heteroअश्वि भेषजम् ashvi-bheshajan-सं० क्ली. phyllum (The black var.of:-) . लघुमेष शृङ्गी । मेढ़ा सिंगी-हिं० । मेड़ा सिढे बं०।। वै०निय० ।(३) गम्भारी वृक्ष । (Gmil. ( See-A jasbringi) o lago ina arboria.) (Sco-Gambhárí.) अश्वीघृतम् ashvi.ghritali-सं० ली. घोड़ी। ग.नि.। के दुग्ध द्वारा मिकाले हुए नवनीत से तैयार अश्वल tashvela-मत्स्याण्ड, मछली का अंडा । किया हुआ घृत, घोड़ी का घो । ( The egg of a fish. ) For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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