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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अरण्यतम्बाकू अरण्यतम्बाकू है। दल धमकीले, पीत वण के ( अथवा । बाहर से सुकेदो मायल पीत और भीतरसे सफ़ेदी । मायल नीले), पञ्च खण्ड युक्त, ऊर्ध्व भाग चिकना और अधः भाग लोमश होता है। नरतन्तु गर्भकेशर की नली से लगे होते हैं। इनमें से ऊपर के तीन ऊर्गीय तथा नीचे के दो लम्बे और चिकने होते हैं। स्वाद--लुबाबी और कुछ कुछ तिक होता है । हाजी जैन इसके पुष्प को नीलगुं बतलाते हैं जो वास्कम् ब्लेटेरिया (V. Bla. ttaria) प्रतीत होता है । पुष्करमूल (Orris. root) के साथ इसके पुष्प की गंधकी तुलनाकी गई है बीज, इञ्च लम्बे, गावामी (शुडाकार ), | अत्यन्त कड़े जिनका चूण करना अति कठिन है, करीब करीव गंध रहित होते हैं । स्वाद कुछ कुछ । चरपरा होता है। रासायनिक संगठन-पुष्प में एक प्रकार का पीत उड़नशील तैल, वसामय अम्ल, स्वतन्त्र सेव वा स्फुरिकाम्ल, चूर्ण स्फुरेत तथा चूर्ण मलेत Malate of lime), ऐसीटेट ऑफ पोटास, रवा न बनने योग्य शर्करा, निर्यास, हरिन्मूरि ( हरियाली) और एक पीत रालीय रक्षक प्रादि पदार्थ होते हैं । (मोरिन) पत्र में रासायनिक विश्लेषण द्वारा ०.८०% स्फटिकवत् मोम, उड़नशील तैल के कुछ चिह्न, ईथरविलेय राल .. ७८/०, ईथर में अविलेय किन्तु विशुद्ध मसार (ऐल कोहल ) में विलेय राल १.००", सूक्ष्म मात्रा में कपायीन, एक निक सत्व,शर्करा, लुभाब इत्यादि, आर्द्रनार ९०% पार भस्म १२.६० प्रतिशत तक होता है । (एडॉल्फ) __ औषध (drug) में लुप्राय १६. ७६/ डेक्स्ट्रीन ( अंगूरी शकर ) के समान काबीज ( Carbohydrate ) ११. ७६ ग्लूकोज ( मध्वोज ) ५. ४८%, सैकरोन । (शर्करौज): २६°/o, आर्द्रता १६.७६°/1, भस्म ४. ११%, सेल्युलोज (काष्टोज) ३२.७५ प्रतिशत और लिग्नीन ( काष्ठीन) श्रादि पदार्थ होते हैं। प्रयोगांश-सुप ( अर्थात् मूल, पत्र, पुष्प एवं बीज) श्रौषध-निर्माण-पत्र-१ से ४ ड्राम । तरल सत्व-(पत्र वा पुष्प द्वारा प्रस्तुत ) १ से ४ फ्ल० ड्रा०। प्रभाव-पत्र वेदनाशामक, प्राक्षेपहर, स्मिग्धताजनक, मूत्रल, मृदुताजनक, लुभाबी और सूक्ष्म निद्राजनक है। उपयोग-मुसलमान चिकित्सक इसे त्रितीय कक्षामें उष्ण व रूत मानते हैं, और विरेचन के साथ इसे श्रामधात तथा संधिवात में देते हैं । दीसकरीदूस ने इसके कई भेदोंका वर्णन किया है। वे इसे कास तथा अतिसार में लाभदायक और वाह्य रूप से मृदुताजनक बतलाते हैं । इसकी एक जाति से लैम्प की बत्ती बनाई जाती धी। ऐसा प्रतीत होता है कि अरब तथा फारस निवासी मुलीन के निद्राजनक (मत्स्य के लिए) प्रभाव से भली भाँति परिचित थे । डॉक्टर स्टयवर्ट के मतानुसार इसकी जड़ उत्तर भारत में ज्वरघ्न रूप से उपयोग में पाती है। युरूप में मुलीन चिरकालसे पशुओं के फुप्फुस रोगों के लिए प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है। इसी हेतु इसे काउन लङ्गवर्ट ( Cow's lungwort) अर्थात् गो-फुप्फुस-तृण कहते हैं। जर्मनी में चूहों को भगाने के लिए इस पौधे को अन्न की कोठियों ( खातों) में रखते हैं। प्रारम्भ में इसके डंठल को मशाल रूप से व्यवहार में लाते थे। इस कारण उक्त पौधे का, फ्रांस में सिर्जी डी नाट्री डेमी ( Cierge de notTe-Dame) तथा फ्लोर डी ग्रांड शैण्डेलिभर (Fleur de grand chandelier) और इङ्गलैंड में हाई टेपर (High taper) नाम पड़ गया। इसके पत्र तथा पुष्प स्निग्धताजनक, मूत्रल, अङमाप्रशमन और आक्षेपहर हैं तथा चिर काल से अतिसार एवं फुप्फुस रोगों में व्यवहृत होते जा रहे हैं । फ्रांस में इसके पुष्प का शीत कपाय मूत्रल रूप से तथा पत्र का प्रलेप स्नेहजमक रूप से व्यवहार में श्राता है। बीज को निदाजनक बतलाया जाता है और कहा जाता है For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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