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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भरण्यजीरम्,-कम् अरण्य तम्बाकू cuma aromatica)की अपेक्षा अधिक शर्करा वा लुभाब होते हैं। प्रयांगांश-पाताली धड़ ( Rhizome ) तथा जड़ । इतिहास-यद्यपि रागज़बर्ग ने उन पौधे को कस्लमुनार (Cassumunar ) लिखा है, तथापि इस बात में अत्यंस सन्देह प्रतीत होता है कि प्राया इसकी जड़ कभी युरूप भेजी गई है या यह कभी भारत वर्ष में व्यापार की वस्तु रही है। कामञ्जल बनहरिद्रा का मालाबारी नाम है और इसीसे औषध-विक्रेताओं को कस्सुमुनार (Cassumunar root) नामक जड़ की प्राप्ति होती है। गंध एवं स्वाव में दोनों जड़ें बहुत समान होती हैं। महरठी नाम निसा संस्कृत भाषा का शब्द है। निशा संस्कृत में हरिद्रा को कहते हैं। इससे यह प्रगट होता है कि देहाती लोग इसकी जड़ को वनाईक मूल की प्रतिनिधि रूप से व्यवहार में लाते हैं। गुणधर्म नथा उपयोग-यह कटु, अम्ल, रुचिकारक, वल्य तथा अग्निवद्धक है। रा० नि०व०६। - इसके प्रभाव तथा उपयोग प्राईक के समान है। कोंकण में इसे वायुनिःसारक, उरोजक रूप से अतिसार एवं उदरशूल में वर्तते हैं। डाइमाक। इसके अन्य उपयोग हरिद्रावत् हैं। ई० मे० मे। भरण्यजीरम्,-कम् aranyajiram,-kam -सं० को वनजीरक, कटुनीरक, जंगली जीरा ।। बनजीरा-बं० । कडुजीरें-मह । जीरकन-ते। (Wild cumin Seed.) देखो-जीरा। गुण-जंगली जीरा, उष्ण वीर्य, कसेला, कटु, वात कफ स्तंभा तथा प्रणविनाशक है। वै० निघ० द्रव्य० गु०। भरण्य-तमाल aranya-tamāla -हि. भरण्य-तम्बाक aranya-tambaki Jपु. कुल, बन सम्बाकू, गीदड़ तम्बाकू, घनतमाल,वनज | ताम्रकूट । ग्रेट मुलीन (Great mullein), मुलरेन (Mullein)-'. । वईस्कम् चैप्सस (Verbascum Thapsus. Linn. -ले। बोइलॉन ब्लैक (Bouillon blanc), मोलीनी ( Molene )-फ्रां० । वूलरफूल, भूम के धूम, बन तम्बाक. फ्रास रुक. एकबीर. काण्ड, (टर, खगोश, वर्खरुबार, स्पिनखाभार, गुरगना, करथी, रावन्दत्रीनी, किस्प्री-पं। प्रदानुद्दुन्य (रीछ कर्ण), माहीजहरज (मरस्य विष), सिक्रानुल हुत ( मरस्य शूकरान), बी. दतुल बैदा (श्वेत क्षुप) और बुसीर-० । माहीजह रह, खुसीर-फा० (इलिन)। . कटुको वर्ग (N. 0. Scrophularinece ). उत्पत्ति-स्थान-शीतोष्ण हिसासय, काश्मीर से भूटान पर्यन्त; यूरूप (ब्रिटेन से पश्चिमारय ) संयुक्र राज्य ( United states). इतिहास-ऐसा प्रतीत होता है कि चिकि. साशास्त्र के संस्कृत लेखकों ने उक्त पौधे का वर्णन नहीं किया है। अरब निवासी प्रदानुदूदुम्ब, माहीज़ह रज तथा सीकरानुल-हुत प्रादि नामों से उक पौधे का वर्णन करते हैं। अर्वाचीन अरबी ( भाषा ) में इसे लबीदतुल्दा वा बुसीर कहते हैं। मुलीन ( Mullein ) का फारसी माम माहीज़ह रह तथा बुसीर है । इख्तियारात में हाजी जैन ने इसका स्पष्ट वर्णन किया है। वानस्पस्तिक-विवरण-पत्र, मूल-पत्र ६ से १८ इंच लम्बे, प्रकाण्ड (धड़) पत्र श्रायताकार; ऊध्यपत्र छोटे नुकीले, डंठल रहित (वृन्त शून्य) न्यूनाधिक दंष्ट्राकार ( लहरदार ) तथा सदी मायल चमकीले (श्वेताभ ) एवं कोमल रोमों से घनाच्छादित होते हैं। स्वाद- लुभाबी कुछ कुछ तिक, गंध ताजा होनेपर यह बात दूर होजाती है। इसके पुष्प ६ से १० इंच लम्बी बालियों पर लगे होते हैं। केवल पुष्पाभ्यन्तर कोप (पुष्प दल) एकत्रत किए जाते हैं। इसकी चौड़ाई (म्यास) से १ इंच तथा लम्बाई । इंच होती For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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