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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धन जाश्र मुग्नवह अ.नश टिमी-घसा नाय मुझपिनह की रचना को | अभूजाअशोका azan shariinh- अ० अरबी में न ( ब) और नमाइज शरीफ़ प्राय हाय, अनजाधू मुहिम्मह., अहम ( ० ) या वायुनंद में नस्तु (धातु) अन्य जाय। वे अवयव जी अपने कार्यकी महत्ता और अंगरेजी में त्रिशु ( its/it) कहते हैं। के अनुसार उत्तमानों की सामीप्य कक्षा का अधिसभी मानके तन्तु विशेष प्रकार की सेलों कार रखते हैं। इनकी गणना उन (उत्तमाङ्ग) (कोदो, घटकों, कीमों ) के परस्पर मिलाप के पीछे होती है, यथा-फुप्फुम, प्रामाशय श्रीर द्वारा बनाते हैं। प्रस्तु-ग्रन्थि, मान्य, रग तथा अंत्र इत्यादि। नालियों की रचना सुध्य भव्य भांति की मेलों प्रअ जा सप्रियह जाहिरह aria-saके पारम्परिक निलार द्वारा होती है। इसका triyyan-zihith-० वदोाङ्ग। वन विस्त बहन नन्तु (धातु )-शात्र ( Thisto के ऊपर के अवयर,यथा-वाशीय मांसपेशियों और logy ) A हंगा। स्तन प्रभृनि । अजाय सुगम zin- kka.: श्रअ जा सदनियह वानिन, aazia-sadri bah-नापामा कालग्रह , मुरक अ y yash-batinath-० वदान्तरस्थ अवयव, ज़ अ । संयुकावा अन्यत्र जो चन्द मुफ़्.. बक्षसे भीतर के अवयव, यथा-हृदय और फुफ्फुस रिशश नन्दु (धान) के पारस्परिक सेल से अादि। थारकिक विनी ( Thoracic Ticबनते। दादर गाल:- नमन अस्थियों, रगों, ना. (1.)-इं। यो परप्रांस पेशियों तथा स्वचा के मिलाप अजा सौत navin-sont-अ० आवाज़ द्वारा बनना है। इस भाँति के अधयय का यदि के अज़ान् , शब्देन्द्रियाँ, शब्दोत्पादक यंत्र, को भाग लिया जाय तो वह अपनी परिभाषा यथा---स्वरयन्त्र, टंट्या (श्वासपथ) और तथा नारा मेनिस होवा, या हाथ की फुफ्फुस इत्यादि । गार्ग श्रॉफ़ वाइम अस्थि अवा मान हम्म नहीं कर लाएगा । ( 11s of mini)-. । श्रअ जा मुहम्म . ४in mahim imah अनजान हम invita-haz.1-अ० पाचक -अ० अअ ज श कह.. यन्त्र, पाकावयव,यथा-ग्रामाशय, यकृत, मासारी कह इत्यादि । डायजेस्टिव मॉर्गन ( Diges. अञ्य जाईलह lizin Thisah-अ० tive Organis)-01 उत्तमाङ्ग । एक्स्ट्रा Extra-१० । जीवनाधार अनजाअ हर्कत azannakat-अ० श्राभूत अवयव, अर्थात वे अवयव जिन पर जीवन अवलम्बित हो । वे चार हैं, यथा-(१) हृदय, । लात हर्कत। (२) मस्तिष्क, (३) यकृत और (१) मुष्क अअ.जा हिस्स nazan hiss-अ० श्रालात ( पुरुपाण्ड), लिंग और शुक्राशय । इनमें हिस्स। से प्रथम तीन मनुष्य जीवन के लिए अत्यन्त | श्रअ जाअ हैवानिय्यह. aazan. haivāniश्रावश्यक है, क्योंकि यह क्रमशः प्राणशक्ति yvth-अ० जीवन शक्रि सम्बन्धी अवयव, प्राणिशनि से सम्बन्ध रखने वाले अवयव, यथा (कुम्बने हयात, कुम्वते है बानी), चेतनाशक्ति हृदय वा धमनी प्रभति। (कुब्धते नफ़्सानी )और प्राकृतिक शनि (कुब्धते. तब ई.) अर्थान् शारीरिक पोषणशनि अवयवों अनय ana.b-अ० जिसको नासिका बड़ी श्रीर को प्रदान करने हैं। इनमें अन्तिम के जननेन्द्रिय लम्बी हो, दीर्घनासा। सम्बन्धी अवयव बजाति रक्षा के लिए परम | अनश aanash-अ० छोगा, छाँगर, छ: अावश्यक हैं। अंगुलियों वाला, छंगा। For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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