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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चन्दा शिरा वार भावना देकर वाराहपुट की चाँच दें। पुनः इस भस्म के समान सीपभस्म, अभ्रक, सुवर्ण, ताम्र तथा लोह भस्म लें और खपरिया कांतलौह से श्राधा भाग मिलाकर उपयुक्र द्रव्यों के काथ तथा विकुवार के रस की भावना देकर रख लें । मात्रा - ३ रत्ती । गुण-यह श्रंत्रशोष, फुफ्फुसदाह, जीर्ण ज्वर, धातुक्षय, राजयच्या, श्वास, गुल्म, अरुचि, प्रति सार, संग्रहणी को नष्ट करता और बल की वृद्धि करता है । र० यो० सा० । अन्त्रश्छदा शिरा antrashchhadā-shirá -सं० स्त्री० अंत्र से अशुद्ध रक को ले जाने वाली शिरा । श्रन्त्रसंकोचक antra-sankochaka - हिं० वि० पु० इन्टेस्टाइनल पेस्ट्रिओट्स (Intestinal astringents ) वे औषधे जो श्रांत्र के कृमिवत् श्राकू चन को शिथिल एवं उनके रसों को कम करती है । संधि antra-sandhi-हिं० स्त्री० दोनों श्रतों का जोड़ | I हानिकर antra-háni-kara-हिं० देखो - मुज़िरात अश्रू । अक्षय antra-kshaya - हिं० संज्ञा पुं० ( Intestinal Tuberculosis ) यह ! रोग एक प्रकार के यक्ष्मा कीट के अन्त्र में ! प्रवेश करने से होता है । देखो - राजयक्ष्मा | श्रन्त्रांडवृद्धि antránda-vriddhi - हिं० संज्ञा स्त्री० [सं० ] (Scrotal hernia) देखोश्रन्वृद्धि । श्राभ्यन्तर कृमि | देखो - कृमिः । अन्त्रादः antrádah - सं० पु० ( Internal worm ) मा० नि० । शार्ङ्ग ७ श्र० । I श्रन्त्राधः धमनी antradhah-dhamaniहिं० संज्ञा स्त्री० ( Inferior mesen. teric artery. ). वह धमनी जो अंधारक कला से नीचे स्थित है । अन्त्राधः शिरा antradhah-shirá-हिं० संज्ञा स्त्री० ( Inferior mesenteric vein). वह शिरा जो श्रन्त्रधारक कला से नीचे स्थित है । ३६१ थेमिक एसिड अन्त्रात्रः पेशी antradhah-poshi-सं० स्त्री० ( Inferior mesenteric muscle ) वह पेशी जो अन्धारक कलासे नीचे स्थित है | श्रन्त्रान्त अन्त्रसंधि antránta-antra-sa -सं० स्त्री० adhi - हिं० स्त्री० ( Curcum ) दोनों श्रतों का जोड़ | देखो - श्रन्त्र पुर । अन्त्रालजी antrálaji ( मा० ) अन्धालजी andhralaji ( सु० ) वात श्लेष्म जन्य क्षुद्ररोग विशेष लक्षण - वह फुन्सी जो कठिन, मुख रहित, ऊँची, गोल, मण्डलाकार तथा श्रपपीच ( राध ) थुक हो । यह कफ और बात के प्रकोप से होती है। मा० नि० क्षुद्ररो० | श्रन्त्री antri-सं० स्त्री० वृद्धदारक लता, वृद्धदारु, विधाय । ( See - Vidhara ) फॉ० ई० २ भा० ॥ श्र० दो० । -हिं० संज्ञा स्त्री० श्रन्त्र, श्रत, अँतड़ी | (Intestine. ) श्रन्त्रो धमनी antrordhva-dhamani - हिं० संज्ञा स्त्री० ( Superior mesenteric artery. ) वह धमनी जो अन्नधारक कला से ऊपर स्थित है। • Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रोर्ध्व शिरा antrordhva shirá - सं० स्त्री० ( Superior mesenteric vein ) वह शिरा जो अवधारक कला से ऊपर स्थित है । अन्थकम् anthakam - स० ली० अङ्गार | (A firebrand embers. ) रत्ना० । अन्थाइलिस anthyilis - यु० रुद्रवन्ती, रुद Fat-f (Cressa cretica, Linn, ) फा० ई० २ भा० | देखो - रुदन्तिका ( न्ती ) । अन्थोनल anthinarlú - ता० गुले अब्बास - फा०, इं० बा० । ( Mirabilis jalapa, Linn) फा० ई० ३ भा० । अन्धेमिक एसिड anthemic Acid - इं० बाबूने का सत, बाबूने का तेजाब | इसके सूचिकाकार वर्णरहित रवे होते हैं । गंध-बाबूना के समान ग्राह्य । स्वाद - अत्यन्त कड़ ुआ। यह जल, मसार, ईथर एवं क्रोरोफार्म में घुल जाता है } इसको वर्नर ( Werner ) महोदय ने सन् For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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