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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] भणियो) ऐसा एक मुहूर्त (सन्वेहि यातनाणीहि ॥३॥) सर्व अनन्त ज्ञानियों ने कहा है ॥शा अर्थात् सर्वज्ञ देवों ने एक मुहूर्त के ३७७३ श्वासोच्छास कथन किये हैं । इसलिए (एएणं मुहुत्ता पाणणं) इस मुहूर्त प्रमाण से (तीसं मुहुला अहोर तं) तोस मुहूत्तों का एक अहोरात्र होता है, और (पन्न रस होता पक्लो) पंच दश १५ दिन रात्रियों का १ पक्ष, (दो पकडा मासो) दो पक्षों का एक मास होता है, फिर (दो मासा उ ऊ) दो मासों की एक ऋतु,(तिरिण ॐ अषणं) और तीन ऋतुओं का एक अयण होता है, और (दो अयणाई संबच्छरे) दो अयगों का एक संवत्सर होता है, (पंच संवच्छशाई जुम) पांच संवत्सरों का एक युग, और (बीसं जुताई वासस) बीस युगों का एकसौ वर्ष होता है, (दस वाससया काससहस्स) दस सौ वर्षों का एक सहस्र वर्ष, (सयं वासयमाणं वासस यसहस्स) सौ सहस्र वर्षों का एक लक्ष वर्ष होता है, और चारासीई वाससबसहस्साई से एगे फुगे) चौरासी लक्ष वों का एक पूर्वाग होता है, (चउराई पुव्यंगलयसहस्साई से एगे पुब्वे, चौरासी लक्ष पूर्वागों का एक पूर्व, और (वरासोइ व्यसयसह सा से सोडिअंगे, चौरासो लाख पूर्वो का एक त्रुटितांग होता है, (मासीई नुडि बंगस यकस्सा से ए। : ४ि) चौरासी लक्ष त्रुटितांगों का एक त्रुटित होता है, और (चउ मासी गुडियालय सहरसाई से एगे उदंग,) ८४ लक्ष त्रुटितों का एक अडडांग होता है, (बासीइ पाडग मतसहस्साई से एगे अड,) चौरासी लक्ष अडडांगों का एक अडड होता है, एवं अपवंग अयंव) इसी प्रकार आगे भी ८४ लाख गुणा करते जाना सो अववंग, अवव, (हुहुअंगे हुहुए) हुहुअंग और हुहुय (उरलो उ८ परसे) उप्पलांग और उपाल, (पउमंगे परमे) पद्मांग और पद्म, (नलिणंगे न. लिणे नलिगांग और नलिण, (अच्छनिरंगे अच्छनिरं) अच्छनिऊरांग और अच्छनिऊर (अउमंग अउय) अयुतांग और अयुत, (गोपडप) प्रयुतांग और प्रयुत, (गउग्रंगे णउए) नयुतांग और नयुत, (चूलिश्रो चूलिया) चलितांग और चलिका (तीसपहेलिगे) शीर्षप्रहेलिकांग, ( चउरासीई सीसपहेलिगसतसहस्साई) ८४ लक्ष शीर्षप्रहेलिकांगों की (सा एगा सोस हेलिया) एक शोर्ष प्रहेलिका होती है, (एताकता चेव गणिते) एतावन्मात्र ही गणना है, और ( एता पता चैत्र गणि अस्स विसये । एतावन्मात्र ही गणित का विषय है अर्थात् फलितार्थ है, अपि तु इसका पूर्ण विवरण किया जा चुका है, इसीलिये विशेष वर्णन नहीं किया है, किन्तु (*अतो तेणं पर उमिए पातात, ) इसके उपरान्त उपमा प्रवती है अर्थात इस गणना के उपरान्त पल्योपम व सागरोपम का ही विवरण किया जाता है, क्योंकि गणना संख्या में केवल एकसौ ९४ ? अक्षर होते हैं, अधिक नहीं होते, इसीलिये सूत्र ने प्रतिपादन किया है कि एतावन्मात्र ही गणित वा गणित का विषय है। एलोवा' पाठान्तरम् । For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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