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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ उत्तरार्धम् ] होती है; पर्याप्त जीवों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट ६ कोस प्रमाण है; उर:परिसर्प स्थलचर पञ्चेद्रिय तिर्यक् योनियों की जघन्य अवगाहनो अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट १००० योजन प्रमाण होती है; संमूछिम उर परिसर्प स्थलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यक् योनियों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृट पृथक्त्व योजन प्रमाण होती है; अपर्याप्त जीवों की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट दोनों ही केवल अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण है; पर्याप्त जीवों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट योजन पृथकत्व होती है; गर्भज उरःपरिसर्प स्थलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यक् योनियों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट १००० योजन प्रमाण होती है; अपर्याप्त जीवों की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट दोनों ही अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण होती है। पर्याप्त जीवों की अवगाहना जघन्य अंगल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट १.०० योजन प्रमाण होती है; भुजपरिसर्प स्थलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यक योनियों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट पृथक्त्व कोस प्रमाण होती है; संमूच्छिम भुजपरिसर्प स्थलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यक् योनियों की अवगाहना जघन्य अंगल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट पृथकत्व धनुष प्रमाण होती है; अपर्याप्त संमूछिम भुजपरिसर्प स्थलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यक् योनियों की जघन्य और उत्कृष्ट दोनों ही अवगाहनाएँ अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण होती हैं; पर्याप्त संमूछिम भुजपरिसों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट पृथक्त्व धनुष् प्रमाण होती है; गर्भज भुज परिसर्प स्थलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यक् योनियों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट पृथक्त्व कोस प्रमाण होती है; अपर्याप्त जीवों की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट दोनों ही अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण होती है। पर्याप्त जीवों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट पृथक्त्व कोस प्रमाण होती है; खेचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यक् योनियों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट पृथक्त्व धनुष की होती है; संमूञ्छिम खेचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों की अवगाहनाएँ भुजपरिसर्प संमूञ्छिम तिर्यों की बराबर है; गर्भज खेचरों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट पृथक्त्व धनुर की होती For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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