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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६ [ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] होती है (समुच्छिमे होइ उच्चित्तं |१| ) इस प्रकार संमूच्छिम तिर्यञ्चों की अवगाहना वर्णन की गई है | १ | (ओोपणसहस्स छाउ बाई) [गर्भज जलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यक् योनि के जीवों की और चतुष्पदों की क्रमशः अवगाहना एक सहस्र योजन प्रमाण और छह कोस प्रमाण होतो है (तत्तो य जोयणसहस्तां) तत्पश्चात् [ गर्भज उरः परिसर्प की भी अवगाहना] १००० योजन प्रमाण है । (गाउयपुहुत भुयनं) भुजपरिसर्प की अवगाहना पृथक्त्व कोत प्रमाण होतो है (क्खी भवे धहुतं | 21 ) गर्भज पक्षियों की पृथक्व धनुष प्रमाण अवगाहना है ॥ २ ॥ भावार्थ- पञ्चेन्द्रिय तिर्यक योनियों की श्रवगाहना जघन्य अंगुल के श्रसंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट १००० योजन प्रमाण होती है; जलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यक् योनियों की जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट श्रवगाहना १००० योजन :माण प्रतिपादन की गई है; संमूच्छिम जलचर पञ्चेन्द्रिय जीवों की अवगाहना भी प्राग्वत् ही है; अपर्याप्त संमूच्छिम जलचर पञ्चेन्द्रिय जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट श्रवगाहना गुल के श्रसंख्यात भाग प्रमाण होती है, और पर्याप्त संमूच्छिम जलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यक योनि के जीवों की श्रवगाहना जधन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट १००० योजन प्रमाण है; गर्भज पञ्चेन्द्रिय तिर्यक योनियों की जधन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट १००० योजन प्रमाण श्रवगाना है; अपर्याप्त जीवों की श्रवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट दोनों ही अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण होती है; पर्याप्त जलवर जीवों की जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट १००० योजन प्रमाण अवगाहना होती है; चतुष्पद स्थलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यक योनि के जीवों की जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट ६ कोस प्रमाण अवगाहना होती है; संमूमि चतुष्पद स्थलचर पञ्चेन् िय जीवों की जघन्य श्रवगाहना अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट श्रवगाहना पृथक्त्व कोस प्रमाण होती है; पर्याप्त जीवों की श्रवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट केवल अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण होती है; पर्याप्त जीवों की अवगाहनो जघन्य अगुल के असंख्यात भाग प्रमाण और उत्कृष्ट पृथक्त्व कोस प्रमाण होती है; गर्भज चतुष्पद स्थलचर पञ्वेन्द्रिय तिर्यक योनियों की जघन्य अवगाहना अगुल के असंख्यात भाग और उत्कृष्ट ६ कोस प्रमाण होती है; अपर्याप्त जीवो की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट दोनों ही अंगुल के प्रसंख्यात भाग प्रमाण For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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