SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७० [ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् (प्रयं) यह (महुकुभे) मधु का घड़ा (प्राप्त ) था (से तं जाणगसरीरदव्यज्क्रपणे ।) यहो ज्ञशरीर द्रव्याध्ययन है। (से किं तं भवियसरीर दबझयणे ? ) भव्यशरीर द्रव्याध्ययन किसे कहते हैं ? (भवियसरीरदवझयणे ) भव्यशरीर द्रव्याध्ययन उसे कहते हैं जैसे (जे जीवे ) जो जीव (जोणिजम्मणनिक्खंते) योनि से जन्म को प्राप्त हुआ अर्थात् योनि से बाहर निकला, (इमेणं चेत्र) और इस (आदतएण) ग्रहण किये हुए (सरीरसगुरसरण) शरीर समुदाय से (निणदिष्टेणं भावेणं) जिनेश्वर के उपदेश किये हुए को (भावेणं) अपने भाव से (अज्झयणेत्तिपयं, अध्ययन रूप पद को ( सेयकाले सिक्खिस्सइ) वह भविष्य काल में सोखेगा लेकिन (न ताव सिक्वइ) अब नहीं सोखता है, (नहा को दिदंतो) जैसे काई दृष्टान्त भो है ? (अयं) यह (महुकुंभे ) मधु का कुंभ (विर इ) होगा (Ii) यह (वयकु भे) घृत का कुंभ (भविस्सइ.) होगा ( तं भवियसरीरदव्यज्य णे ।) यही भव्य. शरीर द्रव्याध्ययन है। (ते किं तं जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्ते दबझपणे) ज्ञशरीर-भव्यशरीर-व्यति रिक्त द्रव्याध्ययन किसे कहते हैं ? ( जाणासर र नवियसरोरवहरिचे दबझपणे ) ज्ञशरीर भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्याध्ययन उसे कहते है जो ( पत्तय ) पत्ते और ( पोत्यय ) पत्रसंचय रूप पुस्तक (लिहि ) लिखे हुए हों, (से तं) वहो ( जाणासरोर) भवियसरीवइरित्ते दबझयणे) ज्ञशरीर-भव्यशरीर-व्यतिक्ति द्रव्याध्ययन है । (से तं णोप्रागमो दवज्झषणे ।) यही पूर्वोक्त नोआगम से द्रव्याध्ययन है । (मे तं दव्यमयणे ।) यही द्रव्याध्ययन है। ( से किं तं भावज्झयणे ? ) भावाध्ययन किसे कहते हैं ? ( भावझयणे ) जिसके द्वारा कर्मों का उपचय निवृत्त हो उसे भागाध्ययन कहते है, और वह (दुवि पर गत्ते,) दो प्रकार से प्रतिपादन किया गया हैं, (तं जहा.) जैसे कि-'पागमो अ) आगम से और (*नोप्रागमत्रो अ।) नोआगम से। (से किं तं अगमो अभावझयणे ? ) आगम से भावाध्ययन किसे कहते हैं ? (भावकणे ) आगम भाव ध्ययन उसे कहते हैं-(नाणर उचउर) जो अध्ययन के अर्थ के उपयोग से युक्त है । ( से तं आगमो भावज्झयणे । ) यही आगम से भावाध्ययन होता है। ( से किं तं नोग्रागमो भावज्झघणे ? : नोआगम से भावाध्ययन किसे कहते हैं ? (नोभागमो भावज्झयणे ) जिसके द्वारा कर्मों का उपचय न हो, उसे नोआगम से भावाध्ययन कहते हैं, जैसे कि *मो शन्द देशवाचक जानना चाहिये। For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy