SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [उत्तरार्धम] १७१ (से किं तं पञ्चक्खे ?) प्रत्यक्ष प्रमाण किसे कहते हैं और वह कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है। (पचरखे ) जिन पदार्थों का बोध प्रत्यक्ष प्रमाण से जाना जाय उसे प्रत्यक्ष प्रमाण कहते हैं, और वह ( दुविहे पएणते, ) दो प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, (तं जहा.) जैसेकि (इंदिअपचक्खे अ) इन्द्रिय प्रत्यक्ष और (गोइंदिअपचक्खे) नोइन्द्रियप्रत्यक्ष। (से किं तं इंदिअपचक्खे ? ) इन्द्रिय प्रत्यक्ष किसे कहते हैं और वह कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? (इंदिअपचक्खे +) जिन पदार्थों का ज्ञान प्रत्यक्ष इन्द्रियों द्वारा उत्पन्न हो उसे इन्द्रिय प्रत्यक्ष कहते हैं और वह (पंचविहे पण्णत्ते, ) पांच प्रकार से प्रतिपादन किया गया है। (तं जहा.) जैसे कि-(सोइंदिअपचक्खे) श्रोत्रे. न्द्रिय प्रत्यक्ष ( चक्खुरिदिअपचक्खे ) चक्षुरिन्द्रिय प्रत्यक्ष ( घाणिदिअपचक्खे ) प्राणेन्द्रिय प्रत्यक्ष ( जिभिदिअपचक्खे ) जिह्वेन्द्रिय प्रत्यक्ष (फासिंदिअपञ्चक्खे,) स्पशन्द्रिय प्रत्यक्ष (से तं इंदिअपचक्ने ।) यही इन्द्रिय प्रत्यक्ष है । (से किं तं णोइंदिअपञ्चक्खे ? ) x नो इन्द्रिय प्रत्यक्ष किसे कहते हैं और वह कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? (णोइंदिअपचक्खे) जो ज्ञान इन्द्रियजन्य न हो उसे नो इन्द्रिय प्रत्यक्ष कहते हैं, और वह (तिविहे पएणत्ते, ) तीन प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, (तं जहा.) जैसे कि-( योहिणाणपञ्चक्ले ) अवधिज्ञान प्रत्यक्ष (मणपज्जवणाणपञ्चक्खे) मनःपर्यवज्ञान प्रत्यक्ष और (केवलणाणपञ्चक्खे) केवलज्ञान प्रत्यक्ष, (से तं णोइंदिअपञ्चक्खे,) यही नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष है, (से तं पञ्चक्खे ।) यही प्रत्यक्ष है। भावार्थ-जीव गुण प्रमाण तीन प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, जैसे कि-ज्ञान गुण प्रमाण, दर्शन गुण प्रमाण, और चरित्र गुण प्रमाण। ज्ञानगुण प्रमाण के चार भेद हैं, जैसे कि-प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, और पागम । + इदं चेन्द्रलक्षणजीवात्परं व्यतिरिक्तनिमित्तमाश्रियोत्पद्यते इति धूमादग्निज्ञानमिव, वस्तुतोऽर्थसाचा कारिवाभावात् परोक्षमेव, केवलं लोकेऽस्य प्रत्यक्षतया रूढत्वात् संव्यवहारतो ऽवापि तथोच्यत इति । भावार्थ-यद्यपि इन्द्रियपत्यक्षज्ञान एवंभूत नयानुसार परोक्ष माना गया है, तथापि व्यवहार नय से यह प्रत्यक्ष भी है। जो ज्ञान श्रोत्रेन्द्रिय द्वारा प्रत्यक्ष हो उस श्रोत्रेन्द्रिय प्रत्यक्ष कहते हैं । इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय प्रत्यक्ष, घ्राणेन्द्रिय प्रत्यक्ष, जिह्वेन्द्रिय प्रत्यक्ष और स्पर्शेन्द्रिय प्रत्यचा जानना चाहिये । x'नो' शब्द निषेध वाचक भी है, और ईषत् वाचक भी है। यहां पर उसे निषेध वाचक जानमा चाहिये। - For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy