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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ उत्तरार्धम] कृष्णादि वर्णो के द्वारा जिन पदार्थो का ज्ञान हो उसे कृष्णवर्ण कहते हैं. इसी प्रकार ( जाव सुकिल्लगुणप्पमाणे । ) शुक्ल वर्ण गुण प्रमाण तक जानना चाहिये (मे २ वएणगुणप्पमाणे ।) इस लिये वही वर्ण गुण प्रमाण है। ___(से किं तं गंवगुणप्पमाणे?) गंध गुण प्रमाण किसे कहते हैं और वह कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? (गं गुणरमाणे) जिन पदार्थो का गन्ध द्वारा ज्ञान हो उसे गंध गुण प्रमाण कहते हैं और वह ( दुविहे पएणत, ) दो प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, (तं जहा.) जैसे कि- सुरभिगंवगुणप्पमाणे, ) सुरभिगन्ध-सुगन्ध गुण प्रमाण और (दुरभिगं वगुणप्पमाणे, दुरभिगन्ध-दुर्गन्ध गुण प्रमाण, (से तं गंधगुणामाणे ।) यही गन्ध गुण प्रपाण है। ( से किं तं रसगुणप्पमाणे ? ) रस गुण प्रमाण किसे कहते है और वह कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? (ग्स गुगरकोणे ) जिन पदार्थो का बोध रसों के द्वारा हो उसे रस गुण प्रमाण कहते हैं, और वह (पंचतिरे पर ण त',) पांच प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, ( त जहा- ) जैसे कि-(तित्तर न गापमाणे ) जिन पदार्थों का तिक्त-तीक्ष्ण रसों के द्वारा ज्ञान हो उसे तिक र ल गुण प्रमाण कहते हैं । इसी प्रकार (जाव महारसगुणप्पमाणे,) मधुर रस गुण प्रमाण तक जानना। (से किं तं फासगुणप्पमाणे ?) स्पर्श गुण प्रमाण किसे कहते हैं और वह कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? ( कासगुणप्रमाणे जिन पदार्थो का स्पर्शों के द्वारा बोध हो उसे स्पर्श गुण प्रमाण कहते हैं, और वह ( अविद पएणत्ते ) आठ प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, (तं जहा.) जैसे कि--(कक्खडफास गुणप्पमाण) जिन पदार्थों का कर्कश-कठिन स द्वारा ज्ञान हो उसे कर्कश सशं गुण प्रमाण कहते हैं। इसी प्रकार ( जाव 28 लुकास गुण रसाणे, ) रूक्ष स्पश गुण प्रमाण तक जानना चाहिये, (से : फास गुणप्पमाणे ।) यही स्पर्श गुण प्रमाण है । (मे किं । संठाणगाप्यमाणे? ) संस्थान गुण प्रमाण केस कहते हैं और वह कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? ( संठाणगाप्रमाणे ) जिन पदार्थों का बोध संस्थानों से हो उसे संस्थान गुण प्रमाण कहते हैं और वह ( पंचविहे पराते,) पांच प्रकार से प्रतिपादन किया गया है (तं जहा) जैसे कि--(परिभण्डलसंगाणगुणापसाणे) जो बलयादि के समान हो उसे परिमंडल संस्थान जानना चाहिये, * यावत् शब्द-मृदु. गुरु, लघु, शीत, उष्ण, निग्यादिका का सूचक है । +चूड़ी। For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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