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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ उत्तरार्धम् ] भावार्थ-- श्रवमान प्रमाण के द्वारा वस्तुओं का प्रमाण किया जाता है । जैसे कि - हस्त से १ दंड से २, धनुष से ३, युग से ४, नालिका से ५, अक्ष से ६, ओर मुशल से ७ । हस्त का प्रमाण २४ अंगुल का होता है और दंडादि छों, चार हस्त प्रमाण होते हैं । भूमि, गृह आदि का हस्तादि सेवमान किया जाता है । क्षेत्र कृषि कार्यादि के वास्ते दंडादि से प्रमाण किया जाता है। राजमार्ग को धनुषके द्वारा मान करते हैं। खाई और कृपादि स्थान का नाना नालिका से किया जाता है। अतः इनके कथन का मुख्य प्रयोजन यही है कि खाई, इष्टकादि से प्रासाद का बनाना, काष्ठादि का विदारण, कट, पट, भीति, परिधि इत्यादि की सिद्धि अवमान प्रमाण के द्वारा की जाती है तथा उक्त स्थानों में जो द्रव्य आश्रित हैं उनका प्रमाण भी उक्त प्रमाण के ही द्वारा होता है। इसी को अवमान प्रमाण कहते हैं । और गणिम प्रमाण निम्न प्रकार से है । जैसे कि एकर, दश १०, सौ १००, सहस्र १०००, दश सहस्र १००००, लक्ष १०००००, दश लक्ष १०००००२, कोटि १०००००००, इनको उत्तरोत्तर दशगुणा करने से निश्चितार्थ की सिद्धि होती है और इसका मुख्य प्रयोजन | भृतक आदिकों को वेतन देना और अपनी आय व्यय की सँभाल करना है । इसी का गणिम प्रमाण कहते हैं । तथा यावन् मात्र द्रव्य हैं उनकी भी संख्या उक्त प्रमाण द्वारा हो की जाती है । " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ प्रतिमान प्रमाण विषय | से किं तं पडिमा ? जपणं पडिमिणिज्जइ, तं जहा गुंजा १, कांगणी २, शिफावो ३, कम्ममास ४. मंडलो ५, सुवन्नो ६, पंच गु ंजा कम्ममास, चत्तारि कांगणी कम्ममा तिरिण निफ्फावो कम्ममासझो, एवं च उको कम्ममास, वारस कम्ममास मंडल, एवं भडयासाय कांगली मंडलो, सोलस्स कम्ममासगा सुवन्नो, एवं चउसट्टिए कांगणी सुवन्नो, एएं पडिमा - माणं किं पयणं । एएणं पडिमाणप्पमाणेणं सुवण १, For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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