________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ragha तिविहा पण्णसा तंजहा-पुवाणुपुवी. पच्छाणुपुब्बी, अणाणुपुयी, से किं तं पुव्वाणपुवी ? पुवाणुपुवी ! एगसमय ठिइए, दुसमय ठिइए, तिसमय ठिइए, जाब दससमय ठिइए, सखिज्ज समय ठिइए, असंखिज्ज समय ठिइए, से तं पुवाणुपुब्बी // से किं तं पच्छ.णुपुत्री ? पच्छाणुपुब्बी ! असंखिज्ज समयठिइए, आव एगसमय ठिइए, से तं पच्छागुपुवी // से किं तं अणाणुपुब्बी ? अणाणुपुब्बी ! एयाएव एगाइयाए एगुत्तरियाए असंखिज गच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नव्भासो दुरूवुणो. से तं अणाणुपुब्बी / से तं उवणिहिया कालानुपुवी।। तीन भेद कहे हैं तद्यथा- पूर्वानुपूर्वी, 2 पच्छानुपूर्वी व 3 अनानुपुर्वी. इस में से पुर्वानुपुर्वी किसे LE कहते हैं ? अहो शिष्य ! एक समय की स्थितिवाले दो समय की स्थितिवाले. तीन समय की स्थिति वाले, यावत् दश समय की स्थितियाले. संख्यात समय की स्थितिबाले व असंख्यात समय की स्थि वाले, यह पुर्वानुपूर्वी. और पच्छानुपूर्वी में असंख्यात समय की स्थितिवाले, संख्यात समय की स्थिति ple वाले यावत् एक समय की स्थितिवाले कहना. और अनानुपूर्वी में एक से असंख्यात पर्यंत का अन्यो न्याभ्यास करके दो कम कहना. यह अनानुपूर्वी का कथन हुवा, यह उपनिधिका कालानुपूर्वी का *388 एकत्रिंशत्तम अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मूल 8808808 कालानुपूर्वी का कथन 498 For Private and Personal Use Only