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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 उवकम्मे, निक्खेवे, अणुगमे, नए // 2 // से किं तं उबक्कमे ? उबक्कमे छबिहे पण्णत्ते तंजहा-णामोवक्कमे, ठवणोवक्कमे, दव्योवक्कमे,खेत्तोवक्कमे,कालोवक्कमे, भावोवक्कमे // णाम ठवणाओ गयाओ // 3 // से किं तं दबोक्कमे ? वोवक्कमे दुविहे पण्णसे तंजहा-आगमओय, नो आगमोओय जाव जाणग सरीर भविय सरीर वहारत्ते, दबोक्कम तिविहे पण्णत्ते तंजहा-सचित्ते अचित्ते मीसए // 4 // से किं तं सचित्त दवावक्कमे ? सचित्ते दव्योवक्रमे तिविहे पण्णत्ते तंजहाअर्थ प्रकार किसी वस्तु की प्राप्ति के लिये नगर में द्वारों से प्रवेश कर सकते हैं वैसे ही आवश्यक रूप नगर में HEवेश करने के लिये अनुयोग–अध्ययनादि की व्याख्या रूप मुख्य चार द्वारों का कथन वैसे ही प्रत्येक के उत्तर द्वारों का कथन कहते हैं // 2 // अब प्रथम उपक्रम का अधिकार कहते हैं. अहो भगवन् ! उपक्रम किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! उपक्रम के छ भेद कहे हैं जिन के नाम-१ नाम उपार र स्थापना उपक्रम, 3 द्रव्य उपक्रम, 4 क्षेत्र उपक्रम, 5 बाल उपक्रम और 6 भाव उपक्रम. नाम व स्थापना उपक्रम का कथन पूर्वोक्त नाम ब स्थापना आवश्यक जैसे कहना // 3 // अहो / गर! द्रव्य उपक्रय किसे कहते हैं ? ओ शिष्य ! द्रव्य उपक्रम के दो भेद हैं- आगम से ही और २नो आगम से यावत् ज्ञ शरीर भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य उपक्रम के तीन भेद कहे हैं११ सचित्त, 2 चित्त और 3 मीश्र॥४॥ अहो भगवन : सचित्त द्रब्य उपक्रम किसे कहते है अनुदानाचारामुनि श्री अमोलक ऋषिर्ज प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी* For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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