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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir A8+ एकत्रिंशत्तम्-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ वण्णिओ समासेणं // एत्तो एकेक पुण अझयणं कित्तइस्सामि // 1 // तंजहासामाइयं, चउवीसत्थओ, वंदणयं, पडिक्कमणं, काउस्सगो, पच्चक्खाणं // 1 // तत्थ पढमं अज्झयणं सामाइयं तस्सणं इमे चत्तारि अणुओगदारा भवंति तंजहाद्वितीय अध्याय, 3 गुणयुक्त को बंदना रूप तृतीय अध्याय, 4 अतिचारों की निवृत्ति रूप चतुर्थ अध्याय 5 दोष रूप व्रण की औषधि रूप पंचम अध्याय और 6 उत्तर गुण की धारणा रूप षष्ठ अध्याय. यह छ आवश्यक रूप छ अध्ययन मानना. यह आवश्यक के स्कंध का संक्षेप से अर्थ वर्णन किया परंतु स्कंध के एकेक अध्ययन का विस्तार पूर्वक व्याख्या करूंगा. जैसे-१सामायिक-समता रूप लाभ. 2 चतार्वशस्तव-चउवीस तीर्थकर के गुणानुवाद. 3 वंदना-गुणाधिक की वंदना करना, 4 प्रतिक्रमण-आतिचार रूप पाप से निवर्तना, 5 कायोत्सर्ग-पाप की विशुद्धि के लिये काया को उत्सर्ग सन्मुख रखना और 6 प्रत्याख्यान-अनागत काल में पाप के आगमन का द्वार रोकना. यह आवश्यक के छ अध्ययन के नाम चिन जानना // 1 // अहो शिष्य ! उक्त छ अध्ययन में से प्रथम अध्ययन का नाम सामायिक है उस के यह चार अनुयोग द्वार होते हैं. जैसे-१ उपक्रम-दूर की वस्तु को नजीक करने का उधम करना, 2 निक्षेप-फिर उसे दृढता पूर्वक करना, 3 अनुगम ब्याख्या करना और 4 नय-अनेक धर्ममय वस्तु को मुख्यता में एक ही धर्मपय मानना. इस का विस्तार पूर्वक कथन आगे कहते हैं. जिस 4884 आवश्यक के अध्ययन 488 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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