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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 338 अनुवादक बाल ब्रह्मचारी माने श्री अमोकक ऋषिजी मितिकटु, तम्हासव्व ससमय वत्तव्वया, णत्थि परसमय वत्तव्यया से तं बतब्बया // 3 // से किं तं अत्थाहिगारे ? अत्याहिगारे जो जस्स अज्झयणस्स अस्थाहिगारे जहा-सावजजोग विरहगाहा से तं अत्याहिगारे॥४॥से किं तं समोआरे ? समोआर छबिहे पण्णत्ते तंजहा-नामसमोआरे, ठवणासमोआरे, दबसमोआरे, खेत्तसमोआरे कालसमोआरे, भावसमोआरे, // नामठवणाओ पुत्ववणियाओ जाव से तं भविय. दाव प्ररूपक है, अक्षुद्र वर्तमानवाला है, उन्मार्ग है, कू उपदेशक है, मिथ्यात्व दर्शन है, इस लिये ससमय की वक्तब्यता को माने पर समय की वक्तव्यता को नहीं माने. यह बक्तव्यता हुई // 3 // उपक्रम के पांचवे भेद की ब्यक्तव्यता कहते हैं-अहो भगवन्! अर्थाधिकार किसे कहते हैं? अहो शिष्य अधिकार सो जो जिस प्रकार सामायिकादि अध्ययनों का माना अर्थ होता है वह अर्थ रूप कर्तव्य को अर्थाधिकार कहना, तद्यथा-सामायिक सो सावध योग की विति रूप वृत का ग्रहण करना, यह अर्थाधिकार हवा // 4 // अब उपक्रम का छठा भेद समवतार की पृच्छा- अहो भगवन् ! समवतार किसे कहते हैं ? . अहो शिष्य ! स्वतः के या पर के अन्तर भाव का जो विचार करना उस समवतार के छ प्रकार कहे हैं तद्यथा-१ नाम समवतार, 2 स्थापना समवतार, 3 द्रव्य समवतार, 4 क्षेत्र समवतार, 5 काल समॐ बनार और 6 भाव समवतार. इन छ में से नाम का और स्थापना का तो जैसा आवश्यक में कहा तैसा पकाशक राजाबहादुर काला सुखदवसहायजी-ज्वालाप्रसादजी. For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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