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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री अमोल्फ ऋषिजी. तंजहा-बंडेलयाय मुक्कलगाय, तत्थणं जे ते बंडेलया, जाव तासिणं सेढीणं विक्खंभसूइ छेछप्पन्नंगुलंसय वगालिभागो, पयरस्स, मुक्केलया जहा ओहियाणं, ओरालियाणं आहारय सरीरा जहा नेरइयाणं तहा भाणियव्वा, तेयग कम्म सरीरा जहा एएसिं चेव वेठबिया तहा भाणियव्वा // 62 // वेमाणियाणं भंते ! केवइया ओरालिय सरीरा पणत्ता ? गोयमा ! जहा नेरइयाणं तहा भाणि क्षेत्र से असंख्यात श्रेणि प्रता का भाग आये वह अणि चौडा पाने सूची की उतनी 256 अंगुल वर्ग उस रूप जो प्रथम भाग वे प्रतर के पर्याय में मूकेलक इत्यादि जैसा औधिक औदारिक शरीर का कहा तैसा कहना. ज्यन्तर सेज्योतिषी असंख्यात गुने अधिक जानना. आहारक शरीर का जैसा नेरीये का कहा तैसा ज्योतिपी का भी कहना और तेजस कार्माण शरीर का जैसा इन के वैक्रेय शरीर का कहा तैसा कहना // 12 // अहो भगवर ! वैमानिक के औदारिक शरीर कितने प्रकार के कहे हैं? अहो शिष्य : दो प्रकार के कहे हैं तद्यथा-१ बंधेलक और 2 मुकेलक.. इन दोनों का नेशये जैसा कहना. है अहो भगवन ' वैमानिक के वैकेय शरीर कितने प्रकार का कहा हैं ? अहो गौतम ! दो प्रकार से * कहा हैं शेरक और मुकेलक इस में से जो बंधेलक है वे असंख्यात हैं. एकेक हरण करते *माकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी प०अनुवादक वाल ब्रह्मचारी For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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