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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org -484883 सूत्र 4 भागो, तासिणं सेढीणं विक्खंभसूइ सखेज जोयण सयवग्ग, पलिभागो पयरल, मुक्केल या जहा उहिया ओरालिया आहारग सरीरा दुविहावि जहा असुरकुमाराणं, वाणमंतराणं भंते ! केवतिया तेअग कम्मग सरीरा पण्णता ? गोयमा ! जहा एएसिं चेव वेउन्बिया सरीरा तहा तेयग कम्मग सरीरावि भाणियव्वा, // 6 // जोइसियाणं भंते ! केवइया ओरालिय सरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता व्यन्तर का शरीर स्थापन करे तो वह सब प्रतर भरा जावे इतने असंख्यात वाणव्यन्तर के बैक्रेय लक शरीर हैं. तिथंच पंचेन्द्रिय से असंख्यातगुने हैं, और मकेलक का जैसा औषिक औदारिक कहा तैसा कहना. वाणव्यन्तर के आहारक शरीर का जैसा असरकुमार का कहा तैसा कहना. अहो भगवन् ! वाणब्यन्तर के तेजस और कार्मान शरीर कितने प्रकार के कहे हैं? अहो गौतम जैसा वाणव्यन्तरके वैकेय शरीर का कहा तैसा कहना // 11 // अहो भगवन् ! ज्योतिषी के औदारिक शरीर कितने प्रकार के कहे हैं ? अहो शिष्य ! दो प्रकार के कहते हैं. तद्यथा-१ बंधलक और 2 मूकेलक, इन 8 दोनों का जैसा जेरीये का कहा तैसा कहना. अहो भगवन् ! ज्योतिषी के वैकेय शरीर कितने कहे हैं? ॐ अहो गौतम ! दो प्रकार के कहे हैं. तद्यथा-- बंधेलक और 2 मूकेलक, इस में जो बंधेलक कहे हैं बे एकेक समय में एकेक हरण करते असंख्यात उत्सपिणी अवसर्पिणी बीत जावे यह काल से, और एकत्रिशत्तम-अनुयोगद्वार मूत्र-चतुर्थमूल 60 प्रमाण का विषय 480 + 498 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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