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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 272 अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक पिाजी उरालिय सरीरा तहा भाणियव्वा / असुरकुमाराणं भंते ! केवतिया बउब्विया सरीरा पत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णता तंजहावंडे लगाय मुक्केलगाय, तत्थणं जे ते बंद्धलगा तेणं असंखजा,असंखेजाहि उसप्पिणी ओसप्पिणीहि अवहीरति कालओ खत्तओ, असंखेजाओ सेढीओ पयरस असंखेजइ भागे, तासिणं सेढीणं विश्वंभसूईअंगुल पढम बग्गम स्म असंखेजति भागो।मुक्केलगाजहा ओहिया ओरालिय सरीरा तहा माणियवा, असुरकुमाराणं भंते ! केवतिया आहारग सरीरा पणत्ता? // 55 // अहो भगवन् ! अमर कुमार देव के औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा है ? अहो शिष्य : जैसा नरक के औदारेक शरीर का कहा तैसा ही कहना अहो भगवन् ! असरकुमार देवता के चैक्रय शरीर कितने हैं ? अहो गौतम ! वैकेय शरीर दो प्रकार के हैं. तद्यथा-१ बंधेलक और 2 मूकेलक. इस में बंधेलक हैं वे असंख्यात हैं वे समय पर हरण करते असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी हरण करते वीत जावे यह काल से. और क्षेत्र से असंख्यात श्रेणि प्रतर के असंख्यातवे भाग में आवे उस श्रेणि की लम्बी सूची अंगुल प्रमाण क्षेत्र की प्रथम श्रेणि उस का प्रथम वर्ग मूल 16 का, असंख्यात श्रेणि के असंख्यात आकाश प्रदेश जितने इतने अमुरकुमार देव के वैक्रेय शरीर जानना. नरक से असंख्यात भाग कमी होती है. और मुकेलक शीर तो जैसा औधिक औदारिक शरीर का कहा तैसा कहना. ओ. भगवन् ! असुर कुमार देव के आधरिक शरीर कितने प्रकार कहा है ? अहो शिष्य ! दो प्रकार *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी* For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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