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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 8+ अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी तहा एतेवि भाणियव्वा // 55 // केवतियाणं भंते ! आहारग सरीरा एण्णता ? गोयमा ! आहारक सरीरा दुबिहा पण्णत्ता तंजहा बद्धलगाय मुक्केलगाय तत्थणं जे ते बहेलगा तेणं सिअ अत्थि, लिअ नत्थि जइ अत्थि जहन्नेणं एगोवा, दोवा तिण्णिवा,उक्कोसेणं सहस्सं पुहुत्तं,मुलगा जहा ओरालिया सरीरा तहा भाणियव्वा // 52 // केवतियाणं भंते ! तेयग सरीरा पण्णता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता श्रेणि प्रतर के असंख्यातवे भाग में आवे उस के जिनमे आकाश प्रदेश होते हैं उतने हैं. और जो म्केलक हैं वे अनन्ते हैं. समय 2 में एकेक का हरण करते अनन्त सर्पिणी उत्सर्पिणी काल व्यतीत होजावे और सब औदारिक मुकेलक का कहा तैसा कहना // 1 // अहो भगवन् ! आहारक शरीर कितने हैं ! अहो शिष्य ! आहारक शरीर दो प्रकार के कहे हैं तद्यथा-बधेलक और मूकेलक. इस में जो बंधेलक है वह किसी वक्त मिलता है किसी वक्त नहीं भी मिलता है क्यों कि जो पूर्व के पाठी आहारक लब्धि के धारक पृच्छा के समय ही यह बनाते हैं जो कभी मिले तो जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट / पृथक्त्व 2 से 1 हजार. और प्रकलक शरीर अनंत है जैसा औदारिक मूकेलक का कहा तसा आहारक का भी कहना. क्यों कि चौदह पूर्व के पाटी पटवार होकर आधा पटल परावर्तन संसार परिभ्रमण करते हैं // 20 // अहो भगवन ! तेजस शरीर कितने हैं? अहो शिष्य ! तेजस शरीर दो *काशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायनी चालापसादजी* For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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