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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ने * अवय दक शलब्रह्मचारि मुनि श्री अणेलख ऋषिनी + हेजा जाव णो पूइत्ताए हव्वमा गच्छेब्बा, जे णं तस्स पल्लरस आगास पएसा तेहि वालग्गेहि अप्फुन्ना तओणं समए 2 एगमेगं आगासपएसं अबहाय जावईएणं कालेणं से पल्ले खीणे जाव निदिए भवती से तं वहारिए खेत्त पलिओवगे // एसि पल्लाणं कोडाकोडी भवेज दस गुणियाते बवहारियरस खेत्त सागरोवमान. एगस्स भवेपरिमाणं // एएहिं धवहारिएहिं खेत्त पलिओवम सागरोवमेहि किं पओयणं ? एएहिं ववहारि नत्थि किंचिवी पओयणं, केवलं पणवणाविजंति, सेत्तं ववहारिए खेत्त पलिओवमे // 43 // से किं तं सुहुम खेत्त पलिओवमे ? सुहुम खेत्ते नहीं. उन बालाग्र को जितने आकाश प्रदेश स्पर्श रहे हैं ( एकेक वालाग्र को असंख्यात 2 आकाश रम्पर्श रहे हैं) उतने समय 2 में निकाले. अर्थात उस पाले में समय 2 में एकेक आकाश प्रदेश निक ले. यों निकालते 2 यह सब पाला वाली होजावे रज रहित यावन् साफ खाली होजावे सब वालाग्र रहित होये, उसे व्यवहार क्षेत्र पल्यो यस कहना. और ऐसे दश क्रोडाकोड पाले खाली होवे उतने काल के समुह एक और मा. अई भगवन् ! म पवहार क्षेत्र पल्योपम सागरोपम कर क्या प्रयोजन में है? अहा शिध्य! इस से कुछ वी प्रयोजन नहीं है फक्त प्रद्यपना रूप प्रमाण बताया है. यह हार क्षेत्र पल्योपम हवा // 43 // अहो भगवन् ! सुक्ष्म व्यवहार पल्योपम किसे कहते हैं ? अहो. प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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