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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 438-486 जहमेणं अंतोमुत्तं उक्कोसे पलीओवमस्स असंखजति भागो अंतोमुहत्तणाई // सन एत्थणं एएसि संगहणीगाहा भवंती तंजहा (गाहा) समुच्छिमे पुवकोडी,चउरासीई भवे सहस्साई // तेवन्नाबायाला धावत्तरिमे पक्खीणं // 1 // गभमि पुवकोडी, तिण्णिय पलिओवमाई परमाउ // उरगभुयग पुन्चकोडी, पलिउवमासंख भागोय // 2 // 38 // मणुस्साणं भंते ! केवइयं कालठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! __ जहणेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसं तिण्णिपलिउवमाइं // समुच्छिम मणुस्सा ? गोयमा ! जहन्नेणंवि उक्कोसेणंवि अंतोमुहुत्तं, गम्भवक्कंतिय मणुस्साणं ? गोयमा ! जहन्नं अंतोमुत्तं उक्कोसणं तिण्णिपलिओवमाइ, अपज्जत्तम गम्भवक्कंतिय मणुस्साणं ? वर्ष की भुजपर की बयालीस हजार वर्ष की. खेचर की बहुतर इमार वर्ष की. और गर्भज की अर्थ 15जलचर की क्रोड पूर्व की, स्थलचर की तीन पल्योपम की, उस्पर की झोड पूर्व की भुजपर की क्रोड पूर्व की. खेचर की पल्योपम के असंख्यातवे भाग की // 38 // समुचय मनुष्य की जघन्य अंतर्मुहूर्त की जतकृष्ट तीन पल्पोषम की, समूळिम मनुष्य की जघन्य तथा उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त की ( यह अपर्याप्त परते हैं) गर्मज मनुष्य की जघन्य अंतर्मुहूर्त की उत्कए सीन पल्योपन की. अपर्याप्त गर्भज मनुष्य की एकत्रिंशत्तम-बनुयोगद्वार मूत्र-चतुर्य मूल 48 प्रमाण विषय 40020486 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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