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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org 48 एकत्रिंश्चत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मूल. 4 गोयमा ! जहण्णं अंतोमुहुर्त उक्कोसं बावीसं वाससहस्साई, सहमपुढवीकाइयाण ओहियाणं अप्पजत्तगाणं पजत्तगाणं तिव्हपिं पुच्छा ? गोयमा : जहणेणवि अंतोमुहत्तं उक्कोसेणति अंतोमुहुत्तं // बाद पढवी काइयाणं पुच्छा ? गोयमा ! - जहणं अतोमुहुत्तं उक्कोसणे वाबीसं वापसहस्साई, अपजत्तग बादर पुढवी काइयाणं " पुच्छा ? गोयमा ! जहण्ण अंतोमुहुत्तं रोम वावीसं वाससहस्साइं अंतोमुहूतुणाई, एवं सेस काइयाणवि पुच्छा वियणं भाणिय-वं, आउकाइयाणं जहण्णं अंतोमुहुत्तं उक्कोसं मत्तवाससहस्साइं, सुहुमआउकाईया ओहियाणं अपज्जत्तगाणं पजत्तगाणं तिहिवि जहणेणंवि अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं पज्जतगा बादर आउकाइयाणं है औधिक की अपर्याप्त की और पर्याप्त की जघन्य आरै जन्कृष्ट अंतर्मुहूर्त की स्थिति जानना. दादर 4 पृथ्वीकाय की जघन्य अंतर्मुहूर्त की उत्कृष्ट व वीस हजार नग की अपर्याप्त वादर पृथ्वीकाय की जघन्य भी उत्कृष्ट भी अंतर्मुहूर्त की. पर्याप्त सादर पृथ्वीकाया की अघन्य अंतर्मुहूर्त की उत्कृष्ट वावीस हजार वर्ष में अंतर्मुहूर्त कम. हीऐसे समुचय अप्काय पी जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की, सूक्ष्म 28 अप्काय सूक्ष्म अप्काय के अपर्याप्त और पर्याप्त की जघन्य सत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त की वादर अप्ायकी जघन्य अंतर्मुहूर्त की उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की. बादर अप्काय के अपर्याप्त की जघन्य उत्कृष्ट 488088 प्रमाण का विषय 428488 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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