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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 215 गिद्वार मन-चतुर्य मूल HR पुच्छा तहा सेस कप्पे देवाणंवि पुच्छा ? भाणियव्वा जाव अचुअकप्पो-सणंकुमार * भवधारणिज्जा जहन्नणं अंगुलस्स असंखजति भागं उक्कोसणं छ रयणीओ, उत्तरवेउब्बिया जहा सोहम्मे तहा सणंकुमारे, तहा माहिंदेवि, बंमलोग लंतएसु भवधारणिज्जा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जति भागं उक्कोसणं पंचरयणीओ, उत्तर वेउव्विया जहा सोहम्ने, महासुक्क सहस्सारमु, भवधारणिज्जा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजति भागं, उक्कोसेणं चत्तारि रयीओ, उत्सर बेउव्विया जहा सोहम्मे, आणत पाणत अराणअच्युएसुभव धाराणज्जा जहण्णेणं अंगुलरस असंखेजति भागं, उक्कोसेशं अंगुल से असंख्यातवे भाग, उत्कृष्ट छ हाथ की. उत्तर वैक्रय को सौधर्म देवलोक जैसी. माहेन्द्र देवलोक की भी सनत्कुमार जैसी जानना. ब्रह्म और लांतक देवलोक के देव के भक्धारणिय शरीर की जघन्य अंगल के असंख्यातबे भाग उत्कृष्ट पांच हाथ की.उत्तर वैक्रय की सौधर्मा देवलोक जैसी कहना." महाभुक्र और सहस्रार देवलोक की जघन्य अंगुल के असंख्यानवे भाग उत्कृष्ट चार हाय की, आरण 17 अच्युत देवलोक की भी इतनी ही कहना. उत्तर वैक्रय सौधर्म देवलोक जैसी. कहना. अवेयवेक के देवता के 3 एक भवधारणी ही शरीर है. यह उत्तर वैक्रय रूप नहीं बनाते हैं इसलिये ग्रीवेक के देवता की भवधारणीय 48*4280पयाणकाविषय 488B अर्थ 8.88शत्तम For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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