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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 889 206 983 एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र-चर्तुथ मूल संखेजइभागं उक्कासणं धणुसहस्सं // 15 // असुर कुमाराणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! दविहा पण्णत्ता तंजहा-भवधाराणिज्जाय उत्तर वेउव्वियाय तत्थणं जासा भवधारणिजा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उक्कोसेणं सत्तरयणीउ, तत्थणं जासा उत्तरवेउव्विया सा जहन्नेणं अंगुल. रस संखेजति भागं, उक्कोसणं जोयण सय सहस्सं एवं असुरकुमारगमेणं थाय कुमाराणं ताव भाणियव्वं // 16 // पुढवि काइयाणं भंते ! के महालिया सरीरो गाहणा पत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणवि उक्कोसणवि अंगुलम्स असंखेजतिभागं एवं सुहुमाणं ओहियाणं अपजतगाणं पज्जतगाणं एवं जाव बादरवाउकाइयाणं 28 प्रमाणका विषय 48862 के संख्यातवे भाग उत्कृष्ट हजार धनष्य की // 15 // असर कमार जाति के देवता के भवधारणय शरीरकी जयन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवे भाग उत्कृष्ट सात हाथकी,उत्तर वैक्रय शरीरकी जघन्य 40 अंगुल के संरुपात भाग उत्कृष्ट एक लाख योजन की. इस प्रकार की य.बत् रानीत कुमार पर्यंत दों है। जाति के भुवनपति देवता के शरीर की अवगाहना जानना. // 16 // पृथ्वाकाया अप्काय 00 तेजप्तकाया और वायु काया. इन चार के सक्षम के पर्याप्त अपर्याप्त की और बादर के पर्याप्त अपय For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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