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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्र | 4. अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋाप धणुसयाई, तमाए भवधारणिज्जा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजति. भागं, उक्कोसेणं अड्डाइजाइ धणुसयाई // तमाए भवधारणिज्जा अहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजति भार्ग उक्कोसण अढाइजार धणुलयाई, उत्तर वेउविया-जहन्नणं अंगुलस्स असंखजइ भागं,उक्कोसणं पंचधणु सयाई / / तमतमाप्पभा पुढबीए नेरइयाणं भंते! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णसा तंजहा-भवधारणिजाय उत्तर वेउब्वियाय, तत्थणं जा सा भषधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइ भागं, उक्कोसेणं पंचधणुसयाई, तत्थणं जा सा उत्तर बेउब्धिया सा जहन्नेणं अंगुलस्स्स. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सखदेवसहायजी-ज्वालापलादजी* अर्थ वे भाग उत्कृष्ट सवासो धनुष्य की. धूम्रप्रभा नरक के नेरीये की भव धारणिय शरीर की जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग, उत्कृष्ट सवासो धनुष्य की, उत्तर वैक्रय शरीर की जघन्य अंगुल के संख्यात भाग उत्कुष्ट अढासो धनुष्य की. तमप्रभा नरक के नेरी के भव धारणिय शरीर की जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग उत्कृष्ट अढाइसो धनुष्य की, उत्तर वैक्रय शरीर की जघन्य अंगूल के संख्यातवे भाग उत्कृष्ट पांचसो धनुष्य की. मतमा प्रभा नरक के नेरीये की अवधारणिय सरीर की * जघन्य अंगुल के असंख्यातवे, भाग उस्कृष्ट पांच सो धनुष्य की, उत्तर वैक्रय शरीर की जघन्य अंगुल For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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