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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 201 अर्थ एकत्रिंशतम-अनुयोगद्वार मन्त्र चतुर्थ मूल 8484881 माण विषय प्पमाणं दो धणु सहस्साई गाउयं च तारि गाउयाइं जोयणं // एएणं उस्सेहंगुले किं पयोणं ? एएणं उस्सेहंगुलेणं नेरइय तिरिक्खजोणिय मणुस्स देवाणं सरी रोगाहणामविनंति // 14 // णेरइयाणं भंते! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता तंजहा-भवधारणिज्जाय, उत्तरवेउब्वियाय तस्थणं जामा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजतिभागं, उक्कोसेणं पंचधणु सयाइं, तत्थणं जामा उत्तर वेउविया सा जहन्नणं अंगलस्स संखजति भागं उक्कोसेणं थणुसहस्सं,रयणप्पभा पुढवी नेरइयाणं भंते! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णता?गोयमा! दुविहां पण्णत्ता तंजहा-भवधारणिज्जा उत्तर वेउम्विया, तत्थ जा सा भवधाराणिज्जा सा माऊ (कोस ) चार कोस का योजन. अहो भगवन् ! इस उत्सेध अंगुल का क्या प्रयोजन है.? अहो शिष्य ! इस उत्सेध अंगल से नरक तिर्यंच मनुष्य देवता की शरीर की अवगाहना का माप किया जाता है // 14 // अहो भगवन् ! नार की के नेरीये के शरीर की कितनी बडी अवगाहना है ? अहो गौतम ! नेरीये के शरीर दो प्रकार के होते हैं, तद्यथा-जन्मसे हो वह भवधारणिय शरीर और वैक्रय भूल बनावे बह चक्रेय शरीर. इस में जो भवधारणिय शरीर है उस की अवगाहना जघन्य * अंगुल के | असं त्यातवे भाग की उत्पन्न हो ते समय, उत्कृष्ट पांच सो धनुष्य की सातवी करक की अपेक्षा. gog For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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