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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हेमवंत हेरणवताणं मणुस्साणं वालेया पुवविदेह अवरविदेहाणं मणुस्साणं सेएगे वालग्गे, अट्ठ पुत्वविदह अवरबिदेहाणं मणुस्साणं वालग्ग भरहेरवयाणं मणुस्साणं से एगे वालगे, अटु भरहेरवयाणं मणुस्साणं वालग्ग सा एगा लिक्खा, अट्ठ लिक्खाओ सा एगाजया, अट्ठ जूयाओ सा एगे जवमझे, अट्ठ जवमज्झा से एगे अंगुले; एएणं अंगुल पमाणेणं छ अंगुलाई पादो, बार अंगुलाइ विहत्थी, च उवीस अंगुलाइ रपणी, अडयालीस अंगुलाइ कुच्छी, छण्ण उइ अंगुलाइ से एगे दंडेइवा-धणुइया-जुगेइवा-नालियाइवा-अखेतिवा-मुसलतिवा, एएणं धणु * अनुवादक पाल ब्रह्मचारी मनि श्री अमोलक ऋषिजी *मनाशक राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी-ज्वालाप्रसादजे अर्थ का वालाग्रजितना जाडा एक हेमवय एरण्यवय मनुष्यका वालाग्र होता है. पाठ हेमवय हेरणःय मनुष्य के चालान जितना जाडाएक पूर्व महाविदेह पश्चिम महाविदेश क्षेत्रके मनुष्यका वालाग्र होता है. पूर्व महाविदेह पश्चिम महा (विदेह क्षेत्र के मनुष्य के आठ वालाग्र जितना जाडा एक भरत ऐरावत क्षेत्र का मनुष्य के बालग्र होता है. भरतैरावत क्षेत्र के मनुष्य के बालाग्र जितनी माडी एकलीख, आठ लीख जितनी जाडी एक यूंका, आठ यूका जितना जाडा एक यव मध्य. आठ यवमध्य जितना बडा एक उत्सेध अंगुल होता है. इस उत्सधे अंगल के प्रमाणे से छ अंगुल का पाद. 12 अंगुल की विहत्थी,२४ अंगल हाथ,४८ अंगुल की ॐ कुच्छी, 96 अंगुल का दंड-धनुष्न-युग-नाला-आखा-मूशल होता है. इस धनुष्य से 2000 धनुष्य का For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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