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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से तं कम्म धारएसे किं तं द्विगु ?तिणि कडुगा ? द्विगु तिकिटुगं, तिणिामहुराणितिमहुरं, तिणि गुणा-तिगुणं, तिणिपुराणि-तिपुर, तिणिसराणि-तिसरं, तिणि पुखराणि-तिपुक्खरं, तिथि विंदुया-तिणिविंदुयं,तिणिपहा-तिपह, पंचनदीउ- पंच नंद, सत्तगया-सत्तगयं, नवतुरंगा-नवतुरंगं, दसगामा-दसगाम, दसxपुराणि 147 अर्थ 1989 एकत्रिंशत्तम्-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुथम संख्या वाची शब्दों से समाहार किया जाये वह द्विगु समास है. जैसे कि त्रीणि कुटकानि समाहृतानि / त्रिकुटकम् अर्थात् तीन कदक वस्तुओं का समाहार किया तब त्रिकटुक हुवा. वैसे ही ब्रीणि मधुराणि समाहृतानि त्रिभधुरम् त्रयानाम गुणानांम समाहारः त्रिगुणम् तीन गुणों का समाहार सो, तीन पुगै के समाहार को त्रिपुरम् , तीन दुरों के एकत्व करने पर त्रिसाम तीन कमलों के एकत्र करने पर त्रिपुष्कर , सीम विदओं के एकस्व होने पर निविद्कम, तीन पथ के एकत्व होने पर त्रिपथम पांच नदियों के समाहार होने से पंचमदिकं. सात हस्तियों एकत्रित होने पर सप्लग नम् , नव अश्वों के एकत्रित होने पर नव सुरंगम् , दश ग्राम के समुह को दशग्रामम् , दश पुर के समुह को दशपुरम. यह द्विगुसमास का कथन हुवा. अहो भगवन् ! तत्पुरुष समास किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! तत्पुरुषसपास के आठ भेद होते है. साब विभक्तियों के सात और आठवा नर तत्पुरुष. परंतु सूत्र में मात्र सप्तमी भिाक्ति के तत्पुरुष For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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