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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अश्वमहिषं, अहिश्च नकुलंच-अहिनकुलम्. से तं बंदे // से कि तं बहुवीही ? बहुवीही ! समासे ! फुल्लाइममि घिरिमिकुडयकलंबा सो इमोगिरी-फुलिय कुडय कलंबो से तं बहुविही समासे।से किं तं कम्म धारए ? कम्म धारए ! धवलो वसहो-धवलवसहो,किण्होमिग्गो, किण्हमिगो सेतोपडो-से उपडो, रत्तो-पटो-रत्तपडो, अनुरूपदकबाल ब्रह्मचारी मनि श्री अमोलक पिजी *७.६.शक सजावहादुर लाला स्वदेवमहायजी पात्रम् , अश्वाश्च महिपाश्च-अश्वमहिषम् अहिश्च नकुलंच अहिन कुलं. यह द्वंद्वसमास हुवा अहो मगवन ! बाबीहि समास किसे कहते हैं ? अहे शिष्य ! बहुव्रीहि समास तीन प्रकार से कहा गया है जैसे-उत्तर पदार्थ प्रधान, उभय पदार्थ प्रधान अथवा अन्य पदार्थ धान. परंतु यहां उदाहरण में यात्र थर्थ पदार्थमान बताया गया है. से इस पर्वत में कुटज कलंबुके वृश प्रफुल्लित बने हैं, इस याफुल्लतकुटज कलंग: अय मिति: यह अन्य पद प्रधान बहब्राही समास हुवा. अहो भगवन् ! कर्म धारय समास किसे कहते हैं? अहो शिष्य ! कर्मधारय दो प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, जैसे-उत्तर पद पवान सर्व पद प्रशन. मत्र में मात्र उत्तर पढ प्रधान के उदाहरण दिये गये हैं. जैसे घालचासो पमः पवनपभः. कृष्णश्चासौ मृगः कृष्णमगः श्वेतश्चासा पटः श्वेतपटः रक्तश्चासो पट: रूपः, यह बारव समास हवा. अहो भगवन् ? द्विग समास किसे कहते हैं ? अहो कि.प्य / ". For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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