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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | 16| अनुसंधान और मानव-मूल्य शोध का लक्ष्य मात्र शोध नहीं है,उपाधियाँ प्राप्त कर सम्मान, यश और धनार्जन मात्र भी शोध का लक्ष्य नहीं है। कोई भी समाज या राष्ट्र जो विश्वविद्यालय चलाता है तथा उच्चस्तरीय अनुसंधान की व्यवस्था वरता है, वह शोध-कर्ता से कुछ अपेक्षाएँ भी रखता है। जिस प्रकार समस्त कृषि उत्पादन का भोग किसान ही नहीं कर लेता, कल-कारखानों के सुफल केवल मिल-मालिक एवं मजदूर के लिए ही नहीं होते, उसी प्रकार अनुसंधान के परिणामों का भोक्ता भी केवल शोधकर्ता नहीं हो सकता। उसे समाज और राष्ट्र के हित को ध्यान में रखकर शोध-कार्य सम्पन्न करना चाहिए। ___ हर समाज और राष्ट्र की एक संस्कृति होती है। संस्कृति निश्चित मूल्यों पर आधारित होती है। उन मूल्यों की रक्षा और विकास ज्ञान-विज्ञान के निरन्तर संशोधन से ही संभव होता है। कारण यह है कि विभिन्न देशों की संस्कृतियाँ हवाओं की तरह संक्रमण करती हैं। इस संक्रमण में जो संस्कृति दुर्बल होती है, वह पराजित होकर बाह्य प्रभावों को अंगीकार कर लेती है और उसके जीवन-मूल्य धीरे-धीरे क्षय-ग्रस्त हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें पहचानना भी कठिन हो जाता है। फल यह होता है कि उस जाति या समाज का विकास रुक जाता है तथा कभी-कभी इतना ह्रास होता है कि उस पराजित जाति या समाज का सांस्कृतिक अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। अतः शोध के द्वारा ही निरन्तर जातीय संस्कृति की सुरक्षा करनी होती है, जो मानव-मूल्यों के अस्तित्व पर निर्भर होती है। ___ शोध के द्वारा मानव-समाज की समस्त बौद्धिक एवं व्यावहारिक सम्पदा का मूल्यांकन संभव होता है। सनातन मानव-मूल्यों की पहचान शोध के द्वारा ही सुरक्षित रह पाती है तथा नवविकसित मानव-मूल्यों का संशोधन भी उसी से संभव होता है । विभिन्न जातियों के सांस्कृतिक आदान-प्रदान में जन्म लेने वाली अनावश्यक टकराहट भी शोध के द्वारा ही दूर की जा सकती है तथा उन जातियों को उन तत्त्वों की पहचान कराई जा सकती है, जो वास्तव में एक ही हैं, केवल भाषा या नाम-रूप बाहरी अन्तर होने से वे भिन्न प्रतीत हो रहे हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020048
Book TitleAnusandhan Swarup evam Pravidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamgopal Sharma
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1994
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
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