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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 82/अनुसंधान : स्वरूप एवं प्रविधि से स्वरूप व उच्चारण में समता रख सकता है, किन्तु उसका अर्थ दूसरा हो सकता है। शब्द-कोश की शोध-यात्रा में इस प्रकार की कठिनाइयों का सामना करने के लिए शोधार्थी को अपनी बहुभाषा-ज्ञान-क्षमता को समझ लेना चाहिए, तभी वह अपने कार्य में सफल हो सकता है। इन सब बातों के साथ-साथ शोधार्थी को भाषा-विज्ञान तथा व्याकरण का भी अच्छा ज्ञान होना चाहिए, तभी वह शुद्ध शब्द-कोश की रचना कर सकता है । जिस भाषा का वह शब्द-कोश बना रहा होता है, जो अनेक वर्षों के प्रयोग के कारण अपना मूल रूप ही खो बैठते हैं। भाषा विज्ञान और व्याकरण के सही ज्ञान के बिना वह उन शब्दों की व्युत्पत्ति नहीं समझ सकता, जो शब्द-कोश की रचना के लिए बहुत आवश्यक है। बोलियों के शब्द-कोश का निर्माण ऐतिहासिक विकास-क्रम की दृष्टि से भी करना होता है। ऐसी स्थिति में तो शब्द के मूल रूप की खोज बहुत आवश्यक हो जाती है । अतः शोधार्थी को विषय की सीमा के साथ-साथ क्षेत्र की सीमा भी बहुत सोच-समझकर निर्धारित करनी पड़ती है। इस सीमा में ही वे अतीत की विरासत वर्तमान को सौंप पाते हैं । वस्तुतः यह कार्य गहन साधना और वर्षों का श्रम चाहता है। __ अतः संक्षेप में हम कह सकते हैं कि शोध के क्षेत्र में जितना महत्त्व अन्य वर्णनात्मक-व्याख्यात्मक विषयों का है, उससे अधिक महत्त्व शब्द-कोश के निर्माण का है। यह कार्य शोध की सामान्य योग्यता से अधिक ज्ञान और अनुभव चाहता है तथा परिश्रम की कठिनता के साथ-साथ समय का व्यय भी अधिक माँगता है। जो शोधार्थी इस क्षेत्र में पूरी ईमानदारी से साधानापूर्वक कार्य करते हैं, वे भाषा और साहित्य का भी बहुत उपकार करते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020048
Book TitleAnusandhan Swarup evam Pravidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamgopal Sharma
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1994
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
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