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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 96/अनुसंधान : स्वरूप एवं प्रविधि विज्ञानों से भी संबंध जोड़ा गया है तथा पशु-पक्षी एवं वनस्पतियों तक की साहित्य में हुई अभिव्यक्ति को खोजा गया है। ____ अब तक उपर्युक्त शोध-कार्य के अतिरिक्त भी कई क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण शोध कार्य हुआ है, वह विस्तार और गांभीर्य दोनों दृष्टियों से हिन्दी भाषा और उसके साहित्य का मस्तक ऊँचा करता है। अनके नवीन विषयों पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में जो शोध-कार्य चल रहा है, वह जब पूर्ण हो जायेगा, तब निश्चय ही हिन्दी का समस्त भाषा वैज्ञानिक और साहित्यिक गौरव लोगों के सामने आ सकेगा। हमें उसके प्रति आशावान रहना चाहिए । संख्या देखकर हमें निराधार यह कल्पना नहीं कर लेनी चाहिए कि हिन्दी का शोध-कार्य निराशाजनक है। जो कार्य हुआ है, वह अनेक स्तरों पर ज्ञान की सीमाएँ विस्तृत करता है तथा उनमें नयी समृद्धि लाता है। हिन्दी राष्ट्र की भाषा है, अत: अगर उसमें सबसे अधिक शोध-कार्य अब तक हो चुका है या आगे होने वाला है, तो यह चिंता का विषय नहीं होना चाहिए, अपितु हमें इस पर गर्व का अनुभव करना चाहिये। निश्चय ही हिन्दी के शोधार्थी अपने कर्तव्य को समझते हैं और वे जिन दिशाओं में नये सत्यों का साक्षात्कार कर रहे हैं, वे दिशाएँ हमारे जीवन के भावी विकास में सहायक होंगी। विशेष अब तक हमने हिन्दी शोध-कार्य का एक सर्वेक्षण विस्तार व गुणवत्ता की सामान्य दृष्टि से प्रस्तुत किया। यहाँ हम अधिक गहराई में जाकर अपने पाठकों को यह बताना चाहेंगे कि विस्तार की दृष्टि से ही नहीं, गंभीरता की दृष्टि से भी कितना महत्त्वपूर्ण कार्य हिन्दी में हुआ है। हमारे शोध विद्वानों ने जिस किसी विषय को शोध का लक्ष्य बनाया है, उसका प्रत्येक कोना झाँकने और परिणामों तक पहुँचने की उन्होंने चेष्टा की है। इस कथन के सत्य को समझने के लिए हम यहाँ तक विशेष कवि तुलसीदास के काव्य पर हुए अनुसंधान की विस्तृत चर्चा करना उपयुक्त समझते हैं। तुलसी-सम्बन्धी शोध तुलसीदास मध्यकालीन भारतीय मनीषा, जिजीविषा और आशा-आकाँक्षा का अवतार थे। भारतीय जनमानस पर अब तक उनकी अमर मूर्ति अंकित है । पाश्चात्य विद्वानों ने भी मुक्तकण्ठ से यह स्वीकार किया है कि संसार में ऐसा कोई कवि नहीं हुआ, जिसे तुलसी के समान लोकप्रियता प्राप्त हुई हो। वस्तुतः इस महाकवि ने जन-हृदय के माध्यम से ही आत्मा-परमात्मा का साक्षात्कार किया था। यही कारण है कि उसने अपने साहित्य को ही नहीं जीवन को भी रहस्यमय बनाकर छोड़ दिया है। जहाँ अनेक कवि अपनी रचनाओं में प्रत्यक्षतः आत्म-परिचय प्रस्तुत करने को प्रेरित हुए, वहाँ महाकवि तुलसीदास ने अपने विषय में सब कुछ अकथित ही रहने दिया । यही कारण है कि विगत सौ-सवा सौ वर्षों में गंभीरता-पूर्वक तुलसी के जीवन और साहित्य को अनुसंधान हो रहा है, किन्तु अधिकांश बातें अब भी रहस्यमय बनी हुई हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020048
Book TitleAnusandhan Swarup evam Pravidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamgopal Sharma
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1994
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
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