SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिन्दी-अनुसंधान : विकास, उपलब्धियाँ और सुझाव/95 दार्शनिक दृष्टि को स्पष्ट करने वाले शोध-प्रबन्ध भी हिन्दी में कई लिखे गये हैं और उनमें से कुछ ऐसे हैं, जिनसे निश्चय ही प्रथम बार हिन्दी कवियों की समस्त मानसी भूमिका का अनावरण हुआ है। ऐसे शोध-प्रबंधों में डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र का "तुलसी दर्शन" व डॉ. गोविन्द त्रिगुणायत का “कबीर की विचारधारा” अविस्मरिणीय हैं। साहित्यशास्त्र और साहित्येतिहास का भी अनुसंधान विस्तार और गंभीरता से हुआ है। संस्कृत और हिन्दी के आचार्यों की विभिन्न शास्त्रीय स्थापनाएँ केवल खोजी ही नहीं गयीं ; उनकी एक समृद्ध परम्परा के रूप में ढंग से व्याख्याएँ भी सामने आई हैं और अनके नये तथ्यों का व्याख्यान-पुनराख्यान हुआ है। इसके साथ-साथ शोधकों का ध्यान साहित्यशास्त्र के इतिहास पर भी गया है। इस क्षेत्र में जो शोध-प्रबंध विशेष महत्त्वपूर्ण कहते जा सकते हैं, उनके नाम हैं-हिन्दी काव्यशास्त्र का विकास (डॉ. रसाल), मनोविज्ञान के प्रकाश में रस-सिद्धांत का समालोचनात्मक अध्ययन (डॉ.राकेश) हिन्दी काव्यशास्त्र का इतिहास (डॉ. भागीरथ मिश्र), ध्वनि सम्प्रदाय और उसके सिद्धांत (डॉ. भोलाशंकर व्यास)। साहित्य का इतिहास प्रस्तुत करने वाले ग्रंथों में डॉक्टर राम कुमार वर्मा का हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास,डॉ.श्रीकृष्ण लाल का 'हिन्दी साहित्य का विकास' तथा 'हिन्दी साहित्य और उसकी सांस्कृतिक भूमिका' (डॉ.लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय) प्रमुख हैं। इन ग्रंथों में प्रथम बार वैज्ञानिक ढंग से हिन्दी साहित्य का विकासात्मक अध्ययन प्रस्तुत हुआ है । इस परम्परा का नवीन शोध-ग्रंथ डॉ. रामगोपाल सिंह चौहान का “आधुनिक हिन्दी साहित्य" है। पाठालोचन की ओर भी हिन्दी शोध-कर्ताओं का ध्यान गया है तथा कई ग्रंथ शुद्ध रूप में संपादित होकर प्रकाशित हुए हैं। इस क्षेत्र की उपलब्धियों में हम श्री पारसनाथ तिवारी द्वारा संपादित कबीर-ग्रंथावली' को प्रथम स्थान दे सकते हैं। आचार्य विश्वनाथ मिश्र तथा परशुराम चतुर्वेदी ने कई कवियों की ग्रंथावली संपादित की है। श्री तारकनाथ अग्रवाल ने बीसलदेव रासो का संपादन करके पाठालोचन-संबंधी शोध को आगे बढ़ाया है। कई विश्वविद्यालयों में पी-एच.डी.की उपाधि के लिए कई शोधार्थी पाठालोचन-संबंधी कार्य करने में जुटे हैं। डॉ.माताप्रसाद गुप्त तथा डॉ. परमेश्वरी लाल गुप्त ने भी पाठालोचन का कार्य किया है । इस ग्रंथ के लेखक ने भी सूरति मिश्र की ग्रंथावली का सम्पादन किया बाल-साहित्य आदि पर भी हिन्दी में शोध-कार्य हुआ है। विभिन्न प्रभावों की भी खोज की गयी है। रीतिकाव्य का आधुनिक कविता पर प्रभाव डॉ. रमेश कुमार शर्मा का इस वर्ग का महत्त्वपूर्ण शोध-प्रबन्ध है । तुलनात्मक अध्ययन की भी सीमा का विस्तार हिन्दी शोध ने किया है। विभिन्न भारतीय भाषाओं के साहित्य से विभिन्न दृष्टियों से तुलना की गयी है तथा अनेक विषय इस प्रकार के स्वीकृत हो चुके हैं, जिन पर कार्य हो रहा है। इस प्रकार के अध्ययन से विभिन्न भारतीय भाषाओं के साहित्य परस्पर निकट आये हैं और अखंड भारत की कल्पना को बल मिला है। विभिन्न समाजशास्त्रीय दृष्टियों से भी हिन्दी के ग्रंथों का मन्थन किया गया है। यों हिन्दी साहित्य की जीवन-गत समस्त स्थितियां हिन्दी शोध के द्वारा स्पष्ट हुई हैं। विभिन्न For Private And Personal Use Only
SR No.020048
Book TitleAnusandhan Swarup evam Pravidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamgopal Sharma
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1994
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy