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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६४ सर्वविपपथ्यापथ्यकथनम् यूकाके उदरमें जानेसे जलोदर नामक रोगकी उत्पत्ति होती है । उस रोग-विकृतिकी शान्ति के लिए स्नुदुग्ध भावित पिप्पली चूर्ण देना चाहिए ||३३|| २९ ६५ सर्वविषशमनोपायः तैल' चाम्लं तथा निद्रां विषपीतश्च वर्जयेत् । तण्डुलं घृतयुक्तं च पथ्यं श्रेष्ठ विषातुरे ||३४|| किसी भी प्रकारके विषसे किसी भी प्रकार से प्रभावित व्यक्तिके लिए तैल, अम्लपदार्थ तथा निद्रा अपथ्य है और धृतयुक्त तण्डुल श्रेष्ठ पथ्य है ||३४|| Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धातुस्तथेोपधातुञ्च वि स्थावर जंगमम् । सर्वेषां वमन भ्रष्ठ तथैव च विरेचनम् । ३५|| धातु उपधातु स्थावर और जंगम विष से उत्पन्न सभी प्रकारके विकारोंकी शान्ति के लिए वमन और विरेचन सर्वश्रेष्ठ उपाय हैं ||३५|| ६६ ज्ञाताज्ञातविषविकारपथ्यकथनम् ६७ अलफे पथ्यनिदेशः ज्ञाताज्ञातविकारेषु सदा चेदं च भेषजम | सिता मधु घृतं दुग्धं तण्डुला माहिषं शकृत् ||३६|| पृथक् पृथक् तद्दयं श्वानस्य च विषं विना । अलकें रूक्षमन्नं च तैलं पथ्यं पलाण्डुः वा ||३७|| For Private And Personal Use Only
SR No.020047
Book TitleAnupan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishram Acharya
PublisherGujarat Aayurved University
Publication Year1972
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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