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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६१ यूकाविनाशनोपायः नागवल्लीरसे सूतमर्दित' चीवर धयेत् । तच्चीवराधारणेन यूकाशान्तिर्भवेत् ध्रुव९५ ॥३०॥ नागवल्ली के रसमें पारदको मर्दित करनेके अनन्तर उसमें वस्त्रको भिगोकर धारण करनेसे अवश्य यूका दूर होती है ॥३०॥ ६२ यूका-लिक्षा-सावाविनाशनोपायः श्रीमूलं गोजले पिष्ट्वा देहलेप च कारयेत् । यूका लिक्षा च सावा च नाश याति तु तत्क्षणात् ॥३१।। बिल्वमूलको गोमूत्रमें पीस कर देहलेप करनेसे यूका, लिक्षा और सावाका तत्क्षण नाश होता है ।।३१।। शिलागन्धकगोमूत्रविडंगकटुतैलतः । एतल्लेपात् भवेत् शान्तिः यूकालिक्षाश्च शावकाः ? ॥३२॥ मनशील, गन्धक, गोमूत्र, वायविंडग इन सभी द्रव्यों को कडुवा तैळमें मिलाकर लेप करनेसे यूका, लिक्षा और सावाका नाश होता है ॥३२॥ ६३ जलोदरशान्तिः पट्पदी चादरे प्राप्ता जलोदर प्रजायते । तस्य स्नुपिप्पली देया विकृतिशान्तिः स्यात्तथा ॥३३॥ १ श्लोकोऽयं ज पुस्तके नोपलम्यते । For Private And Personal Use Only
SR No.020047
Book TitleAnupan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishram Acharya
PublisherGujarat Aayurved University
Publication Year1972
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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