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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पल परिमाण बाणपुंख के रसको शर्करा के साथ प्रातःकाल उठ कर पीने से मूषकके विषका नाश होता है ॥१८|| ५२ श्वेतमूषकजन्यग्रन्थिचिकित्सा मूषकः पतितः चोर्ध्वात् श्वेतवर्णः सुदारुणः । पातस्थाने भवेत् ग्रन्थिः सा ग्रन्थिः मृत्युकारका ॥१९|| श्वेत वर्णका सुदारुण मूषक जिस स्थान पर ऊपरसे गिरता है, उस स्थानमें और उसके आसपास ग्रन्थि उत्पन्न होती है तथा वह ग्रन्थि मृत्युका कारण बनती है ॥१९|| शम्त्रेण प्रन्थिं विस्फेाट्य गार्दभं शकृतं पिबेत् । तेन मूषकदष्टस्य विकृतेः शान्तिकृत भवेत् ।२०। उक्त प्रन्थिका शस्त्रसे भेदन करना और गार्दभ शकृतका पान करना चाहिए । इससे मूषक दशके सभी विकार शान्त होते हैं ॥२०॥ ५३ सिहबालविषशान्तिः मधु च पलमानं च दिनविंशतिकं पिबेत् । तस्य सिंहवालसस्य ? विषं न स्यात कदाचन ।२१। वीस दिन पर्यन्त पल मान मधुका पान करने वाले पुरुषको सिंहबाल से उत्पन्न विकारों की शान्ति होती है ।।२१॥ ५४ भ्रामरीमक्षिकाविषशान्तिः माहिषं नवनीतं तक्रं दंशे च मईयेत् । भ्रामरी माक्षिकाशान्तिस्तथा च नागफेनकात् ॥२२॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020047
Book TitleAnupan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishram Acharya
PublisherGujarat Aayurved University
Publication Year1972
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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