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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवनीतयुक्त मेघनादरसके लेपसे भल्लातक से उद्भूत शोथ नष्ट होता है ।।५।। दारुसर्पपमुस्ताभिः नवनीतेन लेपयेत् । भल्लातकविकारोऽयम् सद्यो गच्छति देहिनाम् ॥६॥ नवनीतके साथ दारु, सर्पप और मुस्ताका लेप करनेसे भल्लातक विकारकी शान्ति होती है ।।६।। नवनीततिलादुग्धैः पुनः खण्डघृतेन च । एतद्वयप्रलेपेन हन्ति भल्लातकव्यथाम् ॥ नवनीत और तिलको दूधके साथ अथवा शर्कराको घृतके साथ लेप करनेसे भल्लातकसे उत्पन्न व्यथा शान्त होती है ।।७।। ३३ भंगाविकारशान्ति: गोदधि शुठीयुक्तं च पाने भंगाविकारनुत् । आर्द्रकस देसडा तद्वत् जले पिष्टवा पिबेन्नरः ॥८॥ पीसकर शुंठीयुक्त गोदधि और संदेसडा के आर्द्रमूल को जलमें पान करनेसे भांगके विकारों की शांति होती है ।।८।। ३४ उच्चटाविकारशान्तिः मेघनादरसा ग्राह्यो शर्करायुक्तपानतः । उच्चटायाः विकारस्य शान्ति: स्यात् दुग्धसेवनात् ॥९॥ - १ "पुनः खण्डयुतं तथा" इति ज पुस्तके पाठः For Private And Personal Use Only
SR No.020047
Book TitleAnupan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishram Acharya
PublisherGujarat Aayurved University
Publication Year1972
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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