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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra नाश होता है || ३ |! www.kobatirth.org ३१ १४ वृन्ताकफलरसका पलमात्र प्रमाण में भक्षण करने से धत्तरविषका ३२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( एक प्रस्थ परिमाण गोदुग्ध और पल प्रमाण शर्करा का पान करनेसे धत्रविका नाश होता है । ( गोदुग्धप्रस्थमेकं तु पलद्वयं तु शर्करा । तत्पानेन विषं याति धतूरकस्य निश्चितम् II ) कार्पासास्थि तथा पुष्पं जलेनात्क्वाथ्य पानतः । धत्तरस्य विषं याति यथा लवणसेवनात् ॥ ) 1 कार्पासके अस्थि और पुष्पके क्वाथका पान करनेसे लवण सेवन के समान धत्तरविषका नाश होता है ) वत्सनाभविकारशान्तिः पटवणस्य वृक्षस्य रसो पलप्रमाणतः । शर्करायुक्तपानेन वत्सनागविषं हरेत् ||४|| पटवण वृक्षके पल प्रमाण रसको शर्करा के साथ areनागविषका नाश होता है ||४|| पान करने से भल्लातकविकारशान्ति: रसो हि मेघनादस्य नवनीतसमन्वितः । भल्लातसंभवं शोफं हन्ति लेपेन देहिनाम् ||५|| For Private And Personal Use Only ग घ च छ ज पुस्तकेषु अधिकौ २ लोकौ २ हीरवणस्य इति ग पुस्तके पट्टशनस्य इति जं पुस्तकें पाठ:
SR No.020047
Book TitleAnupan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishram Acharya
PublisherGujarat Aayurved University
Publication Year1972
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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