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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७१ अमूनसागर तथा प्रतापसागर तरंग २० छैईजलस्त्रापावेतौ स्लाकैलकालप्रसूतहोय ५७ अथवा ईजंत्र नॅस्वादेपेतीतत्कालप्रसूतिहोय अथर्मूढगर्भकोउत्पत्तिल क्षराजतनलिजीस्त्रीकासरीरमैंचायकुपितहोय स्त्रीकाजोनि माहि अरउदरकूषिगांहिसूलने पर तउतरवादेनहींअरोदृष्टप बनगर्भनेवांकोकारदेजोनिच्यारि४प्रकारकरिके सोपकारलियूं . छू अथगर्भमैबालकाष्टपवनच्यारिपकारकरि अथवा पा उकारकरिरहैछैसोधकारलि. कीलक १प्रतिपुर२ परिघ ३ बीज४ अर्घबाहुचरणसिरपसवाडाकाभेदकरारप्रकारसूबा लकभागकागर्भमैरहेछ अथकालककोलक्षगलि. स्त्रीकै जोनिकै टैकालोसोलागिजाय तीनकीलककहाँ परस्त्रीकी जोनिकै टैहाथ पगाराअायजायतीनै प्रतिषुरकहिजै स्वीका जोनिकैमूदै पागलसीलागजायतीनपरियकहीजे स्त्रीकोजोनि कैमूंदसिरायअटकै तीनबीजक टगर्भकहीजे ४स्त्रीकोजोनि कैमूंटै पेटायअटकै ५स्त्रीकोजोनिकै टैपसवाडोप्रायट कै अरस्त्रीकोजोनिकै टैमुनींचोहोय स्त्रीकोजोनिकै टै मगरअटके-श्रेसेंमूढगर्भारपकार होयछै अथमूटगर्भ कोअसाध्यलक्षगलि जात्राकोमांथोऊभोसधौरहेनहीलर स्योजाय अरजीस्त्रीकालाजजातीरहै अरजीगर्भवतीस्वीकासर्व अंगसीतलहोजाय अरजीगर्भवतीस्त्रीकीशरीरकानसांनीलीहो जाय स्त्रीकोबालकमूबोजाणिजे अरवास्वाभीमरिजाय । अथजींस्त्रीकागर्भमैंजोबालकमूर्वाहोय. नीरुषाकोगर्भ रकैनहीं अरको टोकालोपिनास लायांहोयजाय अरवेंका नाकका अरवेंकामूरांकासासमैमूंचाकीसीडरगंधियावेअरपे . . For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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