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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५ अमृतसागर तथापनापसागर तरंग २ न१५ देनीतंदिकसंनिपातपूरिहोय७ अथकंठकुज्वरसन्निपात कोलक्षएलिष्यते मोथोघणोदूषै अरदाहहोय अरडादमेंपीडा होय सरीरबहुततानोहोय मू होय गलोरुकिजाय अरपकिर्जय अरवांकीसरीरमैंपीडाहोय अरबके येजीमेंलक्षणहोय तीनेकुंठ कुज्वरसन्निपातजारिजै योसन्निपातकष्टसाध्यछे अथकंठकु ज्वकोजतनलिष्यते काकडासींगीचित्रके हरडैकीछालि कडू सो कचूर चिरायतो भाउंगीदारुहलद कयली पुहकरमूल नाग रमोथो कुराकी छालि इंद्रजव कुटकी कालीमिरचियेसारीबरा बरिले इनकुंजोकूटकारटंक २॥ कोकाटोदोन्ग्रूवषतांदिनप्तां ईदेयतो कंठकुज्वसंनिपातजाय औरभीउपद्रवासमेतरिहोय एअथकर्गकसन्निपातकालक्षालिष्यतेरास्ना आसगंध नागरमोथो दोन्यूंकटाली भाउंगी काकडासींगी हरडैकीछालि वच पोहकरमूल कुटकी येसबबराबारले इनकुंजोकूटकरिट क२॥कोकादोदोन्यूंबषतांदिन २० देतोकाकसन्निपातजाय १अथकाकरोदूसरोजतनलिष्यने हलद हिगोटाकीजड कूट सहजशांकीजडे सीधोलूरा दारुहलद देवदारु इंदायरा कीजड़ येोषदिबराबरले इनकूकूटिपाककेदूधमेमिहीषरल करैरकर्णमूलके ठंगोहीलेपकरैतीकर्रामूलबोटजाय अरक मूलकोरोगहूरिहोय २अथवा कपमूलकै उठलाहीकैजोकल गावैकर्णमूलमाफिकलोहीकदाजैतो कर्णमूलनिश्चैजाया ब्योहोय अथभग्ननेत्रसन्निपातकोलक्षालिष्यतेजी रोगीकोस्मरजातोरहेज्वरकोवेगहोय बांकानेत्रहोय अंरचंच हनेत्रहोय अरश्रम कांप पीहोय चकयोहोय येजीमेलक्षराहोय For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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