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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०६ १८ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग जै २ यापारक्षा अरनेत्ररोगवालाकैतनीवस्तकरिजैनहीं सुरमां उगेरे काजलघालिजेनहीं घणघृतषु वाजे नहीं परकसायलीबटा ईगैरेकुपथ्यकराजेन हींगरिष्टभोजनकराजेनहीं स्नानकराजेन हाँ पानउगेरैगर भवस्तषुवाजेन हीं जितनेत्रांकेयाराम होयजिते इंतिनेत्रांकासमस्तरोगांकी उत्पत्तिलक्षणसंपूर्ण पथ समस्तनेत्ररोगांकाजतनलि• नेत्रांकारोग वालानें लंघनचर लैप धरस्वेदकर्म परसिरकीनसकीसीरछुमावो यरच्या श्वान नकर्मकरिवो भरनेंच्या दिलेरचरजतनत्याकरि नेत्रांकाधिकारस काय अथषिषणाई होयती कोजननलि जाषिषणीय ईहोयतीकैदिन ३ ताईतोयंजनादिककीजै नहीं ओनेनकाइषणापणांंंकाचोजाणि पाउनेत्रको षणांप चोथेोदनपकिजाय नदिनेत्र मैत्र्यंजनऔषदिकरेतनेत्रगो आब्यौहोय? हेमंतरितु परशसीरितुमैनौयंजनमध्यान्हमैंकार जै अरमीपरितुमरशरद रितुमैमध्यान्हपहली अंजनकीजै पर वर्षाऋतुमैबादलनही होयतदियंजनकीजे पर वसंतरितुमैचा हैजा दहीत्र्यंजनकीजे जोसुरमाउगेरेयंजन करैतो ईकैनेत्ररोगक देहा होयनहीं प्रथमतोवांपित्र्यजिजे पाछेजीवलीयांषियां जिज्ञेयोसंप्रदायछें अथत्र्षणीकोलेपलि • हरडैकी छालि सींधोलूया सोनागेरू रेसोने येबराबरिले त्यांनेजलसूंमिहींवादि नेत्रांऊपरिलेप करैतौसर्वनेत्रकारोगजाय । अथइस रोलेपलिप्यते सोहका पत्रिमैनींबूकोरसनांषि पाछेवेरसनेंक्यूं येकजामो करै पाछैनेत्रऊपरलगावेतौ नेतात्र्याच्याहोय १ अथनेत्रकाङ्क्षिवनेंतत्कालइरिकरैसोलैपलि• अफीम मासो? For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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