SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 412
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०५ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग १५ अरनेत्रांमैंवारंवारपीडपणीचाले तीनैवातपर्यायनेत्ररोगकहिले २ अथसकाक्षिपावनेत्रकारोगकोलागलि. जीकानेर मुंदिजायअरबले अरलालहोयजाय अराछीतरैसूनहीं रलूषाहोजायवुसारा तीनेसुकाक्षियाकनेत्रकोरोगकहिजे ५ अथअन्यतोपासनेत्ररोगकोलक्षगलि.जींकाषांधीशिरदा टिकानभवांराग्राषियांमेचायकीपीडचणीचाले तीनेअन्यतोचा तनेत्ररोगकहिजे १४ अथअम्लाध्युषितनेत्ररोगकोलसएलि. जींकानेत्रसाराकालाअरलालहोजाय अरपकिजाय परमेसो. जानेंलीयांदाहहोय अरनेत्रांमैं पाणीआये तीनेअम्लाध्युषितने रोगकहिजे५अथसिरोत्पातईनैलौकिकमैंसबलवायक हैतीकोलक्षरगलिजीकाआष्यांमैपाडहोय अथवानहीं हो य परकीयांकीनसांनांबासरीसीलालहोय चहुंओर ईनें सिरोत्यातसबलवायनेत्रकोनेत्रकोरोगकहिजे १६ अथसिराह र्षनेत्रकारोगकोलक्षालिन्जोपुरषाज्ञानथकाईसबले वायकोजतननहींकरतीकींषिमैनां चारवारबहोतपडियो होकरै अरवानेत्रां क्यूंभीदासैनहीं ईनैसिराहर्षनेत्ररोगकहि जै१७ अथनेत्रांकोरोगगयोनहींतीकोलक्षगलि नेत्रमें पीडरहै अरमैलालईरहे अरमैंषाजिरहै अरममूलभी रहै नदिजाणिजेईकानेत्ररोगछरोगगयोनहीं अथनेत्र कोरोगजातोरत्योतीकोलक्षगलि. नेत्रमैंक्यूंभापीडनहीं रहै अरपाजियूमीवैनहींअरवेंकैसोजोहोयनहीं पर {उगैरै मैंक्यूंभागायनहीं आरवानेत्रांकोनिपटायोवर्णहो यभरमिहीभीसर्वरस्तजथार्थदातांकानेत्रकोरोगगयोजागि For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy