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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग २ छूकठाइजेतीसन्निपातहरिहोई१४ अरसन्निपातवारेस पकठावोबालिष्योहे सोलोकविरुङहे सोनहीकीजे १५अथ चा सन्निपातवारेकॉलोहकीसलाकानिपटतातीकारकीपग थल्यांकै अरवेंकाभवांराकैवाचिअरवेंकाललाटकेंवीचिलो हकीसलाकाकोडाहदाजैतोसन्निपातरिहोय १६योवैद्यवि नोदमेलिष्योछै अरमंत्रजंत्रउगेरेंकेसाधन भीसन्धिपातडू रिहोयछे सश्रुतचरकवाग्भट्टकेमतसैनौसन्निपातजुरएकही छै पणिोररिषीश्वरनकैमनसौंसन्निपातज्वरवायन ५२प्रका रकेहैतीमैतरामुष्यहै तिनकैजुदेजुटेनामभरलक्षगरज तनलिबूंछं अथनेरासन्निपातकानामलिष्यते संधिग अंतकररुगेदाह ३चित्तम्म्म४सीलांगतंद्रिक ६कंटकुज्व ७ कर्णक - भग्ननेत्र रक्तष्टीवी प्रलाप जिव्हकारअभिन्यास १३अवयांकापायुर्बललिबूंछं संधिगदिन रहै अं तकदिन रहै रुग्दाहदिन २० रहे चितभ्रमदिनरहै सीतांग दिना५रहै तरिकदिन २५रहै कंउकुज्वदिनारहै कर्णकमहीना रहे भग्ननेत्रदिन-रहै रक्तष्टीवीदिन रहे प्रलापदिनार है जिदकदिनार रहै अभिन्यासदिन१५रहै येनेरासंन्निपातकी आयुर्बलकहापरिणयांमैउपदयाठिावतोततकालादमीम रजाय अरसन्निपानजुरबारेमनुष्यकासातलजननकीजैनहीं दिनसोवादीजैनहींअहवसेसजलपाइजे अरामअरकफघटेऐसौजननकीजैसंन्निपातकेोषमाफिकलंघनकराजे अथ संधिगसन्निपातलक्षगलिष्यतेजीमनुष्यकैसंधिगसन्नि पातउपजेजीकासरीरकासंथिसंधिमैघी मूलचाले सरीर For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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