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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir in २ ३३ अमृतसागरतथाप्रतापसागरनरंग कास्योपारोटंक ५सोध्यागंधकटंक ५सोध्योसींगीमुहरोटंक५ जायफलटंकरपीपलिटंक १०पारागंधककीकजलीकरै पाछे येसारीऔषदि ममिलाय पादाकारसमेदिन षरलकरेपछै रतीप्रमागदीजैतौ सन्निपातज्वरसीनवर दिसूचिकाविसम ज्वर जीर्णज्वर मंदाग्नि माथांकारोग यांनयोरसइरिकरैछे रहवे घरहस्यमेलिष्योछे अथसन्निपानमैसीतउपज्योहोयती कोउवटगोलिष्यते मिरचि पीपलि संठिहरडकिहाली लो द पुहकरमूल चिरायतौकटकी कूट कचूर इंद्रजव येबराबरि ले इनकूनियरमहीपास सरीरकैमर्दनकीजैतो पसेवनैसीता गनेंदूरिकरै१०अथवा पारोटक ५ सींगीमुहरोटंक ५मिरचिट क २०यतूराकाफलकाराषटंक १०येसर्वमिहीवांटिसरीरकैम ईनकरैतो अतिपसेव अतीसीतांगसन्निपातरिहोय ११ अ यमहासन्निपातरिकरिवेकोजतनलिष्यतेपारोसींगी महरो कालीमिरचिनीलोथूथो नौसादर येसर्बबराबरिलेया कूमिहीवांटि धतूराकारसमें परलसराकारसमेरोराकरे पा छेरोगीकामस्तगकैक्षोरकराय मस्तकापरवारोटीरापह राजविकासरीरकैतापहोयाबरोचेनन्सहोयत्रा पैनो ओपुरषजी अरऊकैनापनहींहोय अरचैतन्यनहींहोय तौरोमनुष्यजीनहीं१२अथवा लसणाराई सहजणांकीज उयांनैगोमूत्रमेंमिहीवांटिनीकारोरीकरै यारोदीमांधापरिक्षा रकरायपहर राषे जोवैनन्यभरतापवेकेनहींहोयतौरोजी नहीं थेजतनवेघविनोदमेलिष्याछेअथसन्निपान रिकरिवेकोजतनलिष्यते महाभयंकरसन्निपातवारेकोपी For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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