SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राण-शक्तिको वृद्धि ७३ आप कुछ और बातें जानना चाहेंगे तो मैं खुशीसे उनके बारे में आपको सूचना दे सकूंगा । आपकी ही चिकित्सा से मैं चङ्गा हुआ हूँ। इसके लिये मैं आपको हृदय से धन्यवाद देता हूँ। आपकी तथा आपके कुटुम्बकी भलाई के लिये मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता हूँ -- भवदीय एन० । प्राण-शक्तिको वृद्धि फिरसे स्वस्थ होनेके लिये शरीर में शक्तिका लाना आवश्यक है और इसकी सिद्धिके लिये हर प्रकार के साधनसे काम लेना चाहिये | चिकित्साकी कोई विधिमें जिसका उद्देश्य शरीरसे विजातीय द्रव्य दूर करना है कुछ-कुछ जीव- शक्तिका होना बहुत आवश्यक है । यही बात मेरी चिकित्सामें भी है। जब शरीर में विजातीय द्रव्य जमा हो जाता है और उससे गांठें पड़ जाती हैं। तो यह समझना चाहिये कि उस मनुष्य में जीवन-शक्ति बहुत ही कम हो गयी है, नहीं तो विजातीय द्रव्य शरीर के भीतर इतना कड़ा नहीं हो सकता । ऐसे आदमीको चङ्गा करनेके लिये हमें इस बातका भरसक यत्न करना चाहिये कि उसकी जीवन शक्ति जो कमजोर पड़ गयी है फिरसे बढ़ जाय । इसके साथ ही साथ इस बात की भी कोशिश होनी चाहिये कि जिन बातों से जीवनशक्ति कमजोर पड़ती हो दूर कर दी जायें । यहां मैं इस बात पर कुछ नहीं लिखना चाहता कि प्राणशक्ति क्या है | इतना ही विचार करना चाहता हूँ कि हम उस शक्तिको किस तरह प्राप्त कर सकते हैं । For Private And Personal Use Only
SR No.020024
Book TitleAakruti Nidan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLune Kune, Janardan Bhatt, Ramdas Gaud
PublisherHindi Pustak Agency
Publication Year1949
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy